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Thursday, May 30, 2024

मेरी कविता के ये बोल

मेरी कविता के ये बोल
मेरी कविता के ये बोल,
देते मन की बातें खोल,
कभी कहीं ये दर्द समेटें 
कभी खुशियां भी अनमोल।

लिखूं कहूं मैं अपने किस्से,
कुछ पूरे कुछ अधूरे हिस्से,
कुछ लिखूं मैं बीना ही सोचे,
लिखा क्या है खुद माथा नोचे।

मन की सारी बातें लिख दूं,
खुद बन कविता कागज़ पर बिखरू,
गढूं कभी मैं कोई कहानी,
ताजा ताजी या बात पुरानी।

जब जब लेखनी करें पुकार,
तब तब लिखने को तैयार,
द्वेष लिखूं या लिखूं उपकार,
कभी किसी का लिखूं श्रृंगार।

कभी लिखी देवो की महिमा,
बढ़ी जिससे इस कलम की गरिमा,
बात लिखूं जो घर कर जाए,
इसको उसको सबको भाए।

कभी कहीं शब्दो में मोती,
कभी भाव की अनुपम ज्योति,
कभी सफलता कभी विफलता,
कभी कुछ लिख लूं बस टहलता टहलता।

लिखना बस अच्छा लगता है,
मित्र यही सच्चा लगता है,
शब्दों की मुक भाषा में प्यारे,
मन दर्पण सा दिखता है।

रोके नहीं लेखनी रुकती,
कभी न थकती कभी न झुकती,
इसका अद्भुत जीवन में रोल,
मेरी कविता के ये बोल।

© अमित पाठक शाकद्वीपी 


Wednesday, May 22, 2024

धूप छांव

जीवन की आपाधापी अब थकने लगे हैं पांव,
कब तक कोई बाट निहारें, कितना सहे ये धूप छांव,
कभी गर्मी है संघर्षों की, कभी ठंडक भी परिणाम,
कभी लगता है आशाओं में, जीवन बीती तमाम।

इसमें उसमें जानें किसमे मिले कभी आराम,
धूप में जब झुलस गए तो किया छांव विश्राम,
सोच सुनहरा सार्थक कब हो, कब खास बने सब आम,
आशाओं के स्वर्ण पटल पर कब से नहीं कोई नाम।

@ अमित पाठक शाकद्वीपी 


हिंदी कविता

Tuesday, May 21, 2024

जल से जीवन


नील गगन से उतरी धारा चीर हृदय पर्वत का,
झर झर बहती नीर निरंतर वेगवान अनवरत सा,
सींचे जल से खेत कई और कइयों की प्यास बुझाए,
लिए कई कई रत्न संपदा आगे बढ़ती जाए।

कहीं खिलाएं पुष्प कई और कहीं पाप ये धोए,
कभी कहीं कोई कृषक इस जल से पहली फसल वो बोए,
शीतल जिसकी धारा में पशुओं का जीवन हो सुन्दर,
कभी इसी के तट पर कोई तीर्थ बने या मंदिर।

पीले फूल की खुशबू से तट की शोभा निखरे,
टूट टूट कर गिरे जल में तो औषधि बन बन बिखरे,
इसके ही बल से धरती की हरियाली का गौरव,
इसकी गुण की गाथा महती अनुपम इसका सौरभ।

इसे सहेजो, साफ रखो तो देगी ये खुशहाली,
वरना केवल प्रदूषित हो होगी फिर बदहाली,
इसकी रक्षा के लिए जन जागरण का पथ अपनाओ,
जल ही जीवन है इस जग में सबको यह समझाओ।
@ अमित पाठक शाकद्वीपी 

Monday, May 20, 2024

हाथों में तेरा हाथ लिए,

हाथों में तेरा हाथ लिए,
मन ही मन मन की बात किए 
सब अपना कह दिया तुमसे,
तुमसे भी सब कुछ जान लिए।

वाणी में कोकिल सी सुन्दरता,
तन पर रति का प्रभाव लिए,
तुम जन्मी ही थी इस वसुधा पे,
शांत सरल स्वभाव लिए।

तुम आन बसी उर के भीतर,
उर्वशी सम ही श्रृंगार किए,
तन मन दोनो की सुंदरता में,
सब सौंप दिया है तुमको प्रिये।

अब तुमसा कौन मिले मुझको,
जब जुड़ गए तुम से तार प्रिये,
तुम सरल सहज ही अव्वल हो,
खुद को जो मेरे साथ किए।

अब रहना बस संग संग मेरे,
जब दुःख के बादल हो घेरे,
सुख दुःख में जो हम साथ न हो,
तो ऐसा जीवन क्या ही जीए।

© अमित पाठक शाकद्वीपी

Sunday, May 19, 2024

श्री राम वन गमन

                       श्री राम वन गमन 
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नमन किया गुरुवर को मन में, दिया राजसी वस्त्र उतार।
पितृवचन को माथ लगाए, सिया राम पहुंचे दरबार।
तन पर वल्कल वस्त्र लपेटे, त्याग दिया सारा श्रृंगार।
नर नारी सब व्याकुल थे तब, नैनों से बहती जलधार।

सिया राम के साथ रहूंगा, पल भर में लक्ष्मण तैयार।
मेरे रहते राम सिया पर, आने न पाए कोई वार।
दिवा रात्र सेवा में इन की, दूंगा सारा समय गुजार।
भैया भाभी की सेवा में, हर्ष मुझे मिल रहा अपार।

नर नारी सब पथ को रोके, कैकई को देती धिक्कार।
कहां चुप है अवध के राजा, कैसे किया वचन स्वीकार।
राजा का पद पुत्र से छीना, भेज रहे वन को सरकार।
अवध राज की छवि पर देखो, छाते गहन ये अंधकार।

© अमित पाठक शाकद्वीपी 


Thursday, May 16, 2024

तेरे साथ ये लम्हे प्रिये देखो कितना खास है।

तेरे साथ ये लम्हे 
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इन लम्हों की बात अनोखी, अनोखा सा एहसास है,
तेरे साथ ये लम्हे प्रिये देखो कितना खास है।

हर दिन दिवाली सी जगमग, हर पल में उल्लास है,
तेरे साथ ये लम्हे प्रिये देखो कितना खास है।

तुम जो थामो हाथ हमारा तो चिंताओं से अवकाश है,
तेरे साथ ये लम्हे प्रिये देखो कितना खास है।

जब से मैंने तुमको पाया तुमपे पूरा विश्वास है,
तेरे साथ ये लम्हे प्रिये देखो कितना खास है।

दीप्त हुई है किस्मत तुमसे, तुम्हारा ऐसा प्रकाश है,
तेरे साथ ये लम्हे प्रिये देखो कितना खास है।

© अमित पाठक शाकद्वीपी 


Wednesday, May 15, 2024

कलम और स्याही


कलम और स्याही की ऐसी रही कहानी,
दोनो ने संग संग मानो जीने मरने की ठानी,
एक होकर दोनो ने ऐसा जादू कर डाला,
गढ़ी कई कविता कहानी गीत गज़ल की माला।

बन कर कहीं आयुध, वैरी को धूल चटाया,
वेगवान कोई कलम जब, पत्रकार के हाथ में आया,
कभी कहीं कोई लेखक इसके दम पर था इतराया,
कभी कहीं इसने कितनो को है साक्षर बनाया।

इसके ही गुण से है, कइयों को अभिमान,
कवि ने लिख दी इसी कलम से, गीता–वेद–पुराण,
कहीं बिखेरी गई प्रेम से, तो शब्दों को महकाया,
जबरन कभी कहीं चली तो हाय कष्ट पहुंचाया।

इसके बल से बने या बिगड़े देशों की सरकार,
इसकी तुलना में फीके है पड़ते दो धारी तलवार,
इसी कलम की स्याही से मैने भी सब कुछ पाया,
बना के इसको संगी साथी ह्रदय स्थल में है सजाया।

© अमित पाठक शाकद्वीपी 

Tuesday, May 14, 2024

झुमका तेरा


नील गगन से ह्रदय धरा पर उतरी तुम धीरे मेरे,
नयन नक्श की चुम्बकत्व थे जैसे मुझको घेरे,
नीले रंग के लिबाज़ में नील परी सी लागी,
तेरे नेह के बंधन में बंध कर मेरी किस्मत जागी।

तन मन दोनो की सुंदरता का ऐसा था प्रमाण,
तन तो मेरा मेरे तक था तुझमें बसे थे प्राण,
तेरी पायल तेरा झुमका तेरा रूप श्रृंगार,
देखूं जब जब मैं तुझको सांसे जाऊं हार।

रूप रति सा करके धारण जीवन में तुम आए,
मेरे मन के निर्जन वन में प्रेम के पुष्प खिलाए,
पहली दफा देख के मुझको थे तुम जब मुस्काए,
तब से अब तक घूमूं पल पल मैं तो अब हर्षाए।

बांध अमित को स्नेह के बंधन में ऐसे हुए दीवाने,
अब तो सब कुछ सौंप दिया है तू माने या ना माने।

© अमित पाठक शाकद्वीपी 

Wednesday, May 8, 2024

ये तेरा स्पर्श

ये तेरा स्पर्श पिया जी, 
दिल में मिश्री घोले,
तुमसे मिलकर ह्रदय की धड़कन भी,
अब राग रागिणी बोले।

मेरे मन के एहसासों को,
तू जो विश्वास से तोले,
होकर मन बांवरा कोई मधुकर,
तेरे पीछे पीछे डोले।

दीप्त भाल पर चमके चांदनी,
बिखेरे रौशनी होले होले 
मंद मुस्कान की अनुपम छटा,
मुख मंडल पे संजोले।

तेरा ये स्पर्श पिया जी,
दिल में मिश्री घोले,
तुमसे मिलकर ह्रदय की धड़कन भी,
अब राग रागिणी बोले।

© अमित पाठक शाकद्वीपी 

Tuesday, May 7, 2024

मां

हों मूर्त रुप में देवी तुम, 
शिशु से जो इतना प्यार किया,
हे मातु जगत जननी प्यारी, 
तूने जग का उद्धार किया।

शशि मुख की शोभा है सरल सहज, 
आंचल में लाड दुलार किया,
अपना सुख न देखा कभी,
सबकुछ तो तूने वार दिया।

है ह्रदय कमल में प्रेम बसा,
तूने ही संवारी मेरी दशा,
मां की ममता में सब सुख है,
सब कष्ट टरे गर कभी कहीं फसा।

पद पंकज की धुली चंदन, 
है मात तुम्हारा अभिनंदन,
ज्यों ज्यों कोई संकट रही हम पर,
तो तुम ही बनी थीं दुखभंजन।

अब मातु मुझे बस शक्ति दो,
हर दिन हर पल तेरी भक्ति हो,
भाग्य विधाता बन कर मां,
मेरे संग सदा तेरी हस्ती हो।
© अमित पाठक शाकद्वीपी 

Friday, May 3, 2024

पराधीन

तू करता जा सबके मन का,
और खुश करता रह सभी जन को,
जब अपनी खुशी की बात रहें,
तो मिला कभी अधिकार नहीं।

है परोपकार ही धर्म तेरा,
और पर चिंता का मर्म तेरा,
अपनी चिंता में खोने को,
तु रहा कभी हकदार नहीं।

सब कुछ सौंप दिया प्यारे,
पर फिर भी किसको ऐतबार नहीं,
रोज रोज के ताने सुन,
अब तो जीना स्वीकार नहीं।

अब कुछ भी करूं तो व्यर्थ लगे,
सुन सुन कर करना शर्त कहीं,
है दूरी भली उस व्यक्ति से,
जिसका उचित व्यवहार नहीं।

© अमित पाठक शाकद्वीपी 



Thursday, May 2, 2024

आम का पेड़


आम का वो पेड़ पुराना,
सारा गांव रहा जिसका दिवाना,
बच्चे बूढ़े और जवान,
सबके मुख पर उसका व्याख्यान।

हर किस्से में वर्णन उसका,
बड़ा रसीला फल था जिसका,
आम के वृक्ष की ठंडी छाया,
गांव वालों ने जहां सब सुख पाया।

ग्राम पंचायत का वह डेरा,
उसके दातुन से सबका सवेरा,
फल भी उसका लकड़ियां उसकी,
अद्भुत शोभा हर घर आंगन की।

गुण में पिछे छोड़े सबको,
फल दे देवे इसको उसको,
बाग बगीचे में रौनक जिस से,
गांव की रही पहचान भी उस से।

पेड़ किनारे की वह सड़क पुरानी,
जिस पथ पर सबकी आना जानी,
ठहरे कोई राहगीर कभी जो,
विश्राम का दे अवसर सभी को।

पर्व त्यौहार में पल्लव से उसके,
तोरण द्वार सजे हम सब के,
उसकी महत्ता क्या बतलाऊं,
बस मैं स्मृतियां दोहराऊं।

शहर में न वो पेड़ आम का,
बाग बगीचा बस रहा नाम का,
दातुन भी अब ब्रश बन बैठा,
मानो वृक्ष हम सब से रूठा।

हमने ही उसकी महिमा न मानी,
मूढ़ बुद्धि हम बड़ अज्ञानी,
शहर में खोजे अब छाया उसकी,
काट काट बेची जो काया जिसकी।

घर का सारा उपस्कर सजाया,
उसकी लकड़ी से ही दीवान बनवाया,
उसी की गोद में रात बिताऊं,
आम का पेड़ नहीं तो बस लकड़ियों से अब काम चलाऊं।

@अमित पाठक शाकद्वीपी 

उनके नैना जैसे जादू

उनके नैना जैसे जादू  ••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• उनके नैना जैसे जादू , सब   को मोहे जाए, झील सरिस हाय इन नैनन में ...