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नमन किया गुरुवर को मन में, दिया राजसी वस्त्र उतार।
पितृवचन को माथ लगाए, सिया राम पहुंचे दरबार।
तन पर वल्कल वस्त्र लपेटे, त्याग दिया सारा श्रृंगार।
नर नारी सब व्याकुल थे तब, नैनों से बहती जलधार।
सिया राम के साथ रहूंगा, पल भर में लक्ष्मण तैयार।
मेरे रहते राम सिया पर, आने न पाए कोई वार।
दिवा रात्र सेवा में इन की, दूंगा सारा समय गुजार।
भैया भाभी की सेवा में, हर्ष मुझे मिल रहा अपार।
नर नारी सब पथ को रोके, कैकई को देती धिक्कार।
कहां चुप है अवध के राजा, कैसे किया वचन स्वीकार।
राजा का पद पुत्र से छीना, भेज रहे वन को सरकार।
अवध राज की छवि पर देखो, छाते गहन ये अंधकार।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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