कलम और स्याही की ऐसी रही कहानी,
दोनो ने संग संग मानो जीने मरने की ठानी,
एक होकर दोनो ने ऐसा जादू कर डाला,
गढ़ी कई कविता कहानी गीत गज़ल की माला।
बन कर कहीं आयुध, वैरी को धूल चटाया,
वेगवान कोई कलम जब, पत्रकार के हाथ में आया,
कभी कहीं कोई लेखक इसके दम पर था इतराया,
कभी कहीं इसने कितनो को है साक्षर बनाया।
इसके ही गुण से है, कइयों को अभिमान,
कवि ने लिख दी इसी कलम से, गीता–वेद–पुराण,
कहीं बिखेरी गई प्रेम से, तो शब्दों को महकाया,
जबरन कभी कहीं चली तो हाय कष्ट पहुंचाया।
इसके बल से बने या बिगड़े देशों की सरकार,
इसकी तुलना में फीके है पड़ते दो धारी तलवार,
इसी कलम की स्याही से मैने भी सब कुछ पाया,
बना के इसको संगी साथी ह्रदय स्थल में है सजाया।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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