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Tuesday, April 30, 2024

मजदूर दिवस

पाबंद समय के लोग थोड़े आतुर हुए उस पल,
बजे थे छः कहीं न जाए मुहूरत टल,
हड़बड़ी में लोग सहसा ही चल पड़े,
मेहनतकश सभी बंदे शहर का नक्शा बदल पड़े।

दीवार पर लटकी घड़ी का बस इशारा था,
रातें रब को सौंपी थी दिन तो हमारा था,
फिर अगले सुबह जब काम पर लौटे,
लगा जैसे प्रभु के धाम पर लौटे।

काम ही तो है अर्चना रब की,
बस काम करना है यही थी गर्जना सब की,
पल में ही सबके साथ से नीव तैयार थी,
खुशियों से भरे मन में उमंग की बौछार थी।

मजदूर सभी जब कमर कस कर उतरे,
भवन का रूप बढ़ा था तब चमक थे और भी निखरे,
सांझ तलक सब ने काया कल्प संवारा,
समय छः बजते ही सभी ने एक दूजे को पुकारा।

कर ली वहीं छुट्टी उस दिन के काम से,
हंसी खुशी लौट चलें सभी आराम से,
वक्त के पाबंद बड़े मेहनती बंदे,
मन से साफ़ होते हैं भले कपड़े रहे गंदे।

अक्सर बड़े बड़े महलों को बनाने में ये व्यस्त रहते हैं,
अपनी टूटी चार दिवारी में भी मगर ये मस्त रहते हैं,
एक दिन समर्पित कर कुछ तो प्रतिष्ठा दिया इनको,
ये मजदूर भाई ही है जो है तारते जग को।

#मजदूर दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
© अमित पाठक शाकद्वीपी 

Monday, April 15, 2024

खिड़की पर खड़ी मैं


खिड़की पर खड़ी मैं, 
अक्सर राहें तेरी तकती,
प्रियतम मेरे तुम परमेश्वर, 
प्रेम ही मेरी भक्ति।

बांट निहारूं नाम पुकारूं,
तुमसे मेरी है शक्ति,
पतिव्रता स्त्री मैं रहूं तो,
मिले इसी से मुक्ति।

इंतजार में रैना बीते, 
कब आएंगे स्वामी,
मेरे मन का सब तुम जानो,
हे मेरे अंतर्यामी।

मान मेरा इस रिश्ते से है, 
जुड़ी जो तुमसे जाकर,
धन्य धन्य है भाग्य हमारे, 
प्रियवर तुमको पाकर।

आन मिलो सजना जी अब,
सही न जाए जुदाई,
कैसे कहूं कैसे मैंने ?
तुम बिन पल है बिताई।

© अमित पाठक शाकद्वीपी 

Friday, April 12, 2024

ईश्वर आराधना

*ईश्वर आराधना* 
रटु रट रट राम, राम की ही रट रटु,
नाम सिया राम का ही रटें मन बांवरा।
राम राम लिए नाम आठों प्रहर सुबह शाम,
राम के लिए सब त्यागे धन बांवरा।।

कृष्ण कृष्ण कण कण , कभी सुने कहीं  कर्ण,
कृष्ण के ही लीलाओं में  मगन मैं सांवरा।
काली कजरारे कृष्ण नैन तेरे काले काले,
इन्हीं के रूप जाल में मन खोता है जरा जरा।।

संग सिया राम के, राधिके भी श्याम के,
देखूं जो कभी छवि तो खुले भाग्य ईश्वरा।
तूने ने लिखी है प्रभु,  नियति मेरी सदा,
कहो तेरे सिवा रखूं,  किस पे मैं आसरा।।

रूप की सुंदरता का, कोई क्या बखान करें,
जपे अधर नाम तेरा, मन भी  है ध्यान धरा।
कोटि कोटि ग्रंथो में महिमा विदित है पर,
फिर भी न जान सकें अमित गुण ये मनोहरा।।

© अमित पाठक शाकद्वीपी

नव वर्ष की मंगल बेला

नव वर्ष की मंगल बेला
नव वर्ष की मंगल बेला है,
वातावरण पूरा ही रंगीला है,
उल्लास नए नव जीवन का,
आज जीव जगत को मिला है।

कई रूप, कई नामों से,
कई विधियों से,  कई भावों से,
जग ने यह पर्व मनाया है,
मन के मंदिर को भक्तो ने,
माता के लिए सजाया है ।

है आज नया आरंभ हुआ,
नव प्राण वायु ने तन को छुआ,
है चारों ओर यूं हरियाली,
जग बगिया के हम सब माली।

अपनी कलियों सी मुस्कान लिए,
हम प्रेम मय भी नाद किए,
मिलकर परिवार और मित्रो संग,
हमने भी त्यौहार के आनंद  लिए।

कोई आज गुडी सजाता है,
कोई मां की ज्योत जगाता है,
कोई पर्व उगादी का है जान कर,
घर घर मिठाई बंटवाता है।

हम सब में बस प्रेम रहे,
आज अन्तर्मन बस यही कहे,
तुम भी हर्ष में झूम उठो,
उल्लास की ऐसी पवन बहे।
@ अमित पाठक शाकद्वीपी

Thursday, April 11, 2024

जिंदगी के सही मायने

चलिए, आज आपको 
एक बोध कराता हूं,
क्या है सही मायने में जिंदगी ?, 
शोध कराता हूं,

जिंदगी साथ है परिवार का,
अनुभव आपके व्यवहार का,
अवसर संबंधों से साक्षात्कार का,
प्रेम स्नेह संगी साथी यार का,

कभी कहीं सरस है जिंदगी,
तो कहीं सारे रस बेकार है,
कहीं उम्मीद से ज्यादा हासिल है किसी को,
तो कोई कहीं जिंदगी का तलबगार है।

कभी कहीं ये रेस है जिंदगी,
कभी कहीं बिल्कुल शिथिल है,
कभी जिम्मेदारियां ही जिंदगी हैं
कभी अधूरी ख्वाहिशें अखिल हैं।

कभी कहीं खुशियां जन्म से अनवरत मिल रही हैं,
कहीं किसी की जिंदगी आभावों में ढल रही हैं,
मेरे तुम्हारे समझ से परे जिंदगी तेज रफ़्तार कोई रेल है,
सही मायने में जिंदगी ईश्वर का खेल है।

© अमित पाठक शाकद्वीपी 


नानी का घर

मेरी नानी का वो घर, 
रहती थीं जहां खुशियां अमर,
खेत और खलिहान सुहाना,
होता था जहां छुट्टियां बिताना।

आम का वो बाग बगीचा,
जिसने मेरा बचपन सींचा,
घर में गेंदे फूल की महक,
सुबह सवेरे चिड़ियों की चहक।

मामा मामी मौसी मौसा,
कभी ले आते थे समोसा,
नलकुप मटके का पानी,
भर भर कर लाती थी नानी।

कच्ची सड़क पर मकान पुराना,
अक्सर होता था आना जाना,
परिचय जहां था मां के नाम से,
जीवन कटता था बड़े आराम से।

जब से नाना नानी गुजरे,
नानी घर से नाते बिछुड़े,
चार कदम पर मामा का अब घर है,
पर रिश्तों की कहां कदर है।

बातें बिलकुल बंद हुईं अब,
खत्म अद्भुत वो प्रेम सुगंध अब,
नानी घर अब कुछ बचा नहीं है,
नाममात्र अब कुछ सच्चा नही है।

अब कुछ पहले सा नहीं इशारा,
फिर जाऊं जो वहां दुबारा,
जब तक नाना नानी जी थे,
बस तब तक था नानी घर प्यारा।
© अमित पाठक शाकद्वीपी 




Wednesday, April 10, 2024

देवी आरती स्वरचित

उतारू हे सखी , हो उतारू हे सखी , 
हो उतारू हे सखी
माता रानी जी के आरती उतारू हे सखी
जग कल्याणी जी के आरती उतारू हे सखी 

केकर देवी ब्राह्मणी 
केेकर  रूद्राणी
केकर कमलारानी हे सखी.....2
माता रानी जी के आरती उतारू हे सखी 
जग कल्याणी जी के आरती उतारू हे सखी 

ब्रह्मा जी प्रिय ब्राह्मणी
शिव की रूद्राणी
विष्णु की कमलारानी हे सखी.....2
माता रानी जी के आरती उतारू हे सखी 
जग कल्याणी जी के आरती उतारू हे सखी 

कौने रूप देवी ब्राह्मणी
कौने  रूद्राणी
कौने रूप कमला रानी हे सखी ....2
माता रानी जी के आरती उतारू हे सखी 
जग कल्याणी जी के आरती उतारू हे सखी 

ज्ञान रूप देवी ब्राह्मणी
शक्ति रूद्राणी
सौम्य रूप कमला रानी हे सखी .....2
माता रानी जी के आरती उतारू हे सखी 
जग कल्याणी जी के आरती उतारू हे सखी 

देवी भवानी मेरो हृदय बसत है.....2
मात ही मात पुकारू हे सखी 
माता रानी जी के आरती उतारू हे सखी 
जग कल्याणी जी के आरती उतारू हे सखी 

आठों प्रहर बस देवी गुण गाऊ 
देवी गुण गाऊ परम पद पाऊ....2
देवी जी के चरण पखारू हे सखी.....2
माता रानी जी के आरती उतारू हे सखी 
जग कल्याणी जी के आरती उतारू हे सखी ।।
                  – अमित पाठक शाकद्वीपी 


Monday, April 8, 2024

जय कारी छंद

जय  हो   श्री  शंकर सरकार।
त्रिभुवन   महिमा  अपरम्पार।।
जग के कारक पालक आप।
करते   समन  सकल  संताप।।

पुनि पुनि धरूं चरण में शीश।
 दया हो कैलाश के ईश।।
"देव" झुकाये निश दिन माथ।
 उर में विराजित शंभुनाथ।।

Sunday, April 7, 2024

हरिगितिका


            हरिगीतिका
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हे शिव प्रभो आनन्ददाता, ज्ञान हमको दीजिये।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को अब, दूर हमसे कीजिये।
लीजिए हमको तब शरण में, हम सदाचारी बने।
भक्त हम रहे तेरे प्रिय अब , वीर व्रतधारी बनें।

अश्कों की सौगात

कहती हैं माँ जानकी,  प्रभु को कर के याद । स्वामी कब तक राह निहारूं  कब आओगे नाथ ।। विधि ने भी क्या भाग्य लिखा है, नियति देती मात...