चलिए, आज आपको
एक बोध कराता हूं,
क्या है सही मायने में जिंदगी ?,
शोध कराता हूं,
जिंदगी साथ है परिवार का,
अनुभव आपके व्यवहार का,
अवसर संबंधों से साक्षात्कार का,
प्रेम स्नेह संगी साथी यार का,
कभी कहीं सरस है जिंदगी,
तो कहीं सारे रस बेकार है,
कहीं उम्मीद से ज्यादा हासिल है किसी को,
तो कोई कहीं जिंदगी का तलबगार है।
कभी कहीं ये रेस है जिंदगी,
कभी कहीं बिल्कुल शिथिल है,
कभी जिम्मेदारियां ही जिंदगी हैं
कभी अधूरी ख्वाहिशें अखिल हैं।
कभी कहीं खुशियां जन्म से अनवरत मिल रही हैं,
कहीं किसी की जिंदगी आभावों में ढल रही हैं,
मेरे तुम्हारे समझ से परे जिंदगी तेज रफ़्तार कोई रेल है,
सही मायने में जिंदगी ईश्वर का खेल है।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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