जय हो श्री शंकर सरकार।
त्रिभुवन महिमा अपरम्पार।।
जग के कारक पालक आप।
करते समन सकल संताप।।
पुनि पुनि धरूं चरण में शीश।
दया हो कैलाश के ईश।।
"देव" झुकाये निश दिन माथ।
उर में विराजित शंभुनाथ।।
करुणामयी प्रकृति तेरे तन को, तेरे मन को, सिंचे देकर शक्ति, अपनी माँ से कम भी नहीं है, करुणामयी प्रकृति। प्रातः काल ये हमें जगा...
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