लक्षण :–
१. बिना पंजीकरण के कार्य : ये संगठन न तो उद्यम पंजीकरण में हैं और न ही जीएसटी पोर्टल पर फिर भी फर्जी तरीको से निम्न गुणवत्ता की पुस्तक प्रकाशित करना या अन्य प्रतिस्पर्धा के नाम पर ठगी।
२.फर्जी वेबसाइट : अक्सर ये अत्याधुनिक वेबसाइट्स बनाते हैं, लेकिन उनके पीछे कोई ठोस आधार नहीं होता। फ्री पोर्टल या ब्लॉग बना कर ये अपने आप को बेहतर और वास्तविक बतलाने का भरपूर प्रयास करते हैं।
३.अत्यधिक शुल्क : प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए हजारों रुपए अंतरराष्ट्रीय प्रमाण पत्र जारी करने के नाम पर वसूलते हैं जबकि किसी गली मोहल्ले में भी इनकी कोई वास्तविक पहचान नहीं होती न ही कोई मुख्यालय या प्रमाणिक पता सार्वजनिक होता है।
४.निष्पक्षता का अभाव : इनके द्वारा आयोजित प्रतियोगिताओं में चयन प्रक्रिया पारदर्शी नहीं होती। हर दूसरे दिन कोई नई प्रतियोगिता नए नए नामों से चलती ही रहती है और इन्ही सब तरीकों से ये अपने जीवन यापन के लिए लोगो को मूर्ख बना कर कर घन जुटाने में लगे हैं।
शिक्षा प्रणाली पर प्रभाव :–
धोखाधड़ी संगठनों का सबसे बड़ा असर शिक्षा प्रणाली पर पड़ता है। ये संगठन छात्रों को भ्रमित करते हैं, जिससे वे अपना समय और पैसे बर्बाद करते हैं। कई बार, ये संगठन ऐसे प्रमाण पत्र जारी करते हैं, जिन्हें भविष्य में नौकरी के लिए महत्वपूर्ण मानकर उपयोग किया जाता है, जबकि वास्तव में ये प्रमाण पत्र किसी मान्यता प्राप्त संस्था द्वारा नहीं दिए गए होते।इ न संगठनों का मुख्य लक्ष्य युवाओं का शोषण करना होता है। वे युवाओं के असुरक्षित भविष्य का फायदा उठाते हैं। प्रतिस्पर्धाओं के नाम पर हजारों रुपये वसूलते हैं, जबकि इनके द्वारा दिए गए पुरस्कारों का कोई मूल्य नहीं होता। कई छात्र अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए इन संगठनों पर निर्भर हो जाते हैं, जो उन्हें निराशा के अलावा कुछ नहीं देते। जब ये संगठन नकली प्रमाण पत्र और पदक वितरित करते हैं, तो समाज में एक गलत संदेश फैलता है कि शिक्षा का कोई मूल्य नहीं है। छात्र समझते हैं कि बिना मेहनत किए भी वे पुरस्कार प्राप्त कर सकते हैं, जो कि एक अत्यंत हानिकारक धारणा है। यह शिक्षा के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
समाज के भिन्न भिन्न अंगो की धोखाधड़ी के खिलाफ भूमिका :–
भारतीय संविधान के अनुसार, धोखाधड़ी और धोखाधड़ी करने वाले संगठनों के खिलाफ कड़े कानून हैं। लेकिन इन संगठनों का पता लगाना और उन्हें कानूनी कार्रवाई का सामना कराना चुनौतीपूर्ण होता है। अक्सर ये संगठन अपने पते और पहचान को छिपाने में सफल हो जाते हैं। धोखाधड़ी से बचने के लिए कुछ निम्नलिखित उपाय अपनाने चाहिए।
- जागरूकता फैलाना : युवाओं और अभिभावकों को इन संगठनों के बारे में जागरूक करना चाहिए। उन्हें समझाना चाहिए कि बिना मान्यता प्राप्त प्रमाण पत्र और पदक का कोई मूल्य नहीं होता।
- सरकारी सहायता : सरकार को चाहिए कि वह ऐसे संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे और धोखाधड़ी करने वालों के खिलाफ कानून लागू करें।
- शिक्षण संस्थानों की भूमिका : शिक्षण संस्थानों को भी ऐसे संगठनों के खिलाफ जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए, ताकि छात्र सही जानकारी प्राप्त कर सकें।
- समुदाय की भागीदारी : समुदाय के सदस्यों को भी इन धोखाधड़ी संगठनों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और एकजुट होकर इनका सामना करना चाहिए।
क्या करें ? कैसे बचें इनसे ?साहित्य में धोखे से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाने चाहिए –
• किसी भी संस्था से जुड़ते समय पहला ही प्रश्न उनकी पात्रता और पंजीयन पर पूछे। उनसे उनकी सरकार की भिन्न भिन्न इकाइयों से प्राप्त मान्यताओं को भली भांति जांचें परखें। कोई संस्था यदि अपना उद्यम पंजीकरण संख्या या जीएसटी संख्या नहीं साझा करें तो समझिए कि वह वैद्य संस्थान नहीं है आपको खतरा हो सकता है।
• एक बार पंजीकरण संख्या प्राप्त हो जाय तो उसे उद्यम वेरिफिकेशन पोर्टल पर अथवा जीएसटी पोर्टल पर डाल कर यह सुनिश्चित कर लें कि उक्त संस्था को प्राकाशन या मुद्रण या अन्य कौन कौन से अधिकार प्राप्त है। यदि चीज़े अनुकूल हो तभी किसी संस्था को राशि जमा करें।
• राशि जमा करने हेतु UPI एप्स का प्रयोग करें ताकि रशीद सुरक्षित रहें और धोखाधड़ी की अवस्था में साक्ष्य प्रस्तुत किए जा सकें।
• ऑनलाइन पैसे ले कर पुस्तक न भेजने या स्पर्द्धा में सम्मिलित नहीं करने या अवैध प्रशस्ति पत्रक जारी किए जाने पर इसकी सूचना कंज्यूमर फोरम या साइबर सुरक्षा पोर्टल पर साझा करें।
• कुछ चीजें अवश्य ही नोट करना आरंभ करें –
१. संस्था प्रमुख का नाम और नम्बर।
२. पुस्तक प्रकाशन की स्थिति में उसका आईएसबीएन (ISBN) संख्या।
३. मैगजीन में प्रकाशन पर उसका आईएसएसएन ( ISSN) संख्या।
४. संस्था का MSME में उद्यम पंजीकरण संख्या।
५. संस्था का जीएसटी पोर्टल में जीएसटी पंजीकरण संख्या।
सशक्त बनिए सुरक्षित रहिए।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
संपर्क सूत्र : 8935857296
(संचालक – साहित्य संगम बुक्स)
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