संगम
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तुम गंगा कि अनुपम धारा,
मैं बहता हूं आवारा,
हम दोनों का मिलन है मुश्किल,
जाने जग ये सारा।
फिर भी मिल जाए जो दोनों,
तो अद्भुत हो ये नज़ारा,
कुछ तुम खुद को मेरी कर दो,
कुछ मैं हो जाऊं तुम्हारा।
आश मिलन की श्वास श्वास में,
पर मिल न पाए बेचारा,
यत्न सभी तो विफल रहे हैं,
कभी मिला न कोई इशारा।
मैं बहुं अब यमुना सा कल कल,
तकूं राह तुम्हारा,
चाह ह्रदय की प्रयाग है बनना,
और संगम हो हमारा।
तुम गंगा कि अनुपम धारा,
मैं बहता हूं आवारा,
हम दोनों का मिलन हुआ तो,
झूमे जग ये सारा।
© अमित पाठक शाकद्वीपी