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Sunday, June 30, 2024

संगम

संगम
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तुम गंगा कि अनुपम धारा,
मैं बहता हूं आवारा,
हम दोनों का मिलन है मुश्किल,
जाने जग ये सारा।

फिर भी मिल जाए जो दोनों,
तो अद्भुत हो ये नज़ारा,
कुछ तुम खुद को मेरी कर दो,
कुछ मैं हो जाऊं तुम्हारा।

आश मिलन की श्वास श्वास में,
पर मिल न पाए बेचारा,
यत्न सभी तो विफल रहे हैं,
कभी मिला न कोई इशारा।

मैं बहुं अब यमुना सा कल कल,
तकूं राह तुम्हारा,
चाह ह्रदय की प्रयाग है बनना,
और संगम हो हमारा।

तुम गंगा कि अनुपम धारा,
मैं बहता हूं आवारा,
हम दोनों का मिलन हुआ तो,
झूमे जग ये सारा।

© अमित पाठक शाकद्वीपी

Saturday, June 29, 2024

उल्टे सीधे कानून

उल्टे सीधे कानून

कैसे ये उल्टे सीधे कानून,
पल पल नर का चूसे खून,
कभी सही को गलत बताया,
कभी गलत को सही लिया चुन।

कभी गर्त मे हमें धकेला,
मानो लिखते आंखें मूंद,
शर्म लाज अब बची नहीं है,
त्याग दिया क्या एक एक बूंद।

जिसने सोचा बस अपना सोचा,
जनता को हरदम ही नोचा,
कोई क्या ही न्याय करेगा,
विधि व्यवस्था भी कितना ओछा।

स्याही न अब सत्य बखाने,
झूठ के दिखते कई बहाने,
जिनकी जेब की वजन बड़ी है,
न्यायधीश को लगे सुहाने।

कुछ भी बोलो कुछ भी जानो,
बुरा भला तो पहचानो,
किसकी कितनी सी गलती है,
इसका तो पैमाना अपनालो।

फिर भी गर हो कोई मजबूरी,
चीज़े बस रखनी हो अधूरी,
तो न्याय का सपना छोड़ो,
अपनी रेस अपने से दौड़ो।

देखो कोई जो कहीं बुराई,
और न आवाज़ उठाई,
 ख़ुद को बस फ़िर कायर जानों,
कुछ नहीं कर सकते हो मानो।

 किसी पे न आक्षेप लगाओ,
जो चलता बस देखते जाओ,
इतने तक तो सब कुछ झेला,
बस झेलते जाओ और मुस्कुराओ।
@ अमित पाठक शाकद्वीपी

Wednesday, June 19, 2024

पायल

बड़े अदम से मैं सोने चांदी में बनवाया गया,
किसी खास मौके पर श्रृंगार सा पैरो में सजाया गया,
मेरी घुंगरू की ध्वनि का असर इतना प्रबल था,
मुझसे हर चाल पर ताल से ताल मिलाया गया।

मैंने शोभा निखारी तेरे दोनों पैरों की,
जब जब मुझ पायल को तूझे पहनाया गया,
मौके पर तेरे ब्याह की मैंने खुशी दुगनी सी कर दी,
ससुराल में जब मेरे ही बल पर इतराया गया।

तेरे पी की प्रिय मैं पांव की पायल,
शोर से करती हूं व्याकुल मन को घायल,
थिरक कर मैंने ही सुकून की बौछार की तुम पर,
आशिक सभी मुझ पायल के कायल।

@अमित पाठक शाकद्वीपी 

Tuesday, June 11, 2024

संगी साथी

 
लेकर इन हाथों में हाथ,
देना है जीवन भर साथ,
बन कर दोस्त रहेंगे ऐसे,
दो बदन एक जान हो जैसे।

अब संग संग ही चलना होगा,
धुप छांव सम ढलना होगा,
होगी बाते जब हम दोनो की,
जिगरी दोस्त थे कहना होगा।

हाथो में लेकर हाथ प्रिये 
अब रहना बस मेरे साथ प्रिये,
इस दिल की धड़कन में बसा लिया,
तेरे आगे जुकाऊँ माथ प्रिये।

हम दोनों ही रहे एक सदा
न कोई अलग अलग दिखता हो
इस रिश्ते का न मोल कोई
अद्भुत अनमोल ये रिश्ता हो।

मिलकर इस जग को जीतेंगे,
कोई बोले ज्यादा तो पीटेंगे,
जब हम राजी तो सब राजी
सब प्रेम से ही अब सोचेंगे।

साथ साथ ही झूमे गाएं,
एक दूजे को हर बात बताएं,
वादा करते हैं अब तुमसे,
दूर रहना न होगा हमसे।

© अमित पाठक शाकद्वीपी 

Monday, June 10, 2024

जल संरक्षण

हूं मैं नदी, झरने और कूप महान,
साक्षात जीवन जहां विद्यमान, 
सींच रही हूं धरती को,
और ह्रास करूं इस परती को।

 बादल से बरसी घनन गहन,
तो हरित किया है वाता वरण,
जल की बूंदों में सब होके मगन,
नाचे ज्यों नाचे मयूर सा मन।

कभी पोषण हो कोई वृक्ष कहीं,
कहीं बुझाऊं कोई प्यास कभी,
कभी प्रबल वेग में बहती चली,
तो दूर किए बाधायें सभी।

कभी पर्वत का सीना फाड़े,
और कदम धरती पर डारे,
कभी शिथिल शिथिल बस बहती रही मैं,
कल कल वेगो में कुछ कहती रही मैं।

जल जीवन जग में जन्म जन्म,
इसे सहेजो तुम कदम कदम,
न इसको तुम अब दूषित करो,
तन मन धन से बस पोषित करो।

कहीं ह्रास न कर दो इस अमृत को,
संरक्षण से न विस्मृत हो,
कुछ नीति कुछ प्रयास करो,
इसे रक्षण का अभ्यास करो।

© अमित पाठक शाकद्वीपी 



Saturday, June 8, 2024

कृषक

कृषक :  कृषक या किसान वह व्यक्ति है जिसका जीवन मूल रूप से खेती पर निर्भर है। भारत जैसे विकासशील देश में लगभग 70% जनसंख्या खेती पर निर्भर है और अनाज उपजाकर देश का भरण पोषण कर रही है। विगत कुछ वर्षों में मंहगाई के कारण या कई गलत कृषि नीतियों के कारण कृषकों का जीवन यापन कठिन होता चला आया है। एक ओर जहां सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य द्वारा कृषको को प्रोत्साहन देती है वहीं दूसरी ओर किसानों को सीधे अपनी फसल मंडी में बेचने पर मनाही है, बिचौलिए उन से उनकी फसल खरीद कर उसे ऊंचे दाम पर बेचते हैं जिसका उचित लाभ भी उन किसानों को नहीं मिलता। स्थिति ऐसी है कि कई किसानों ने तो खेती बाड़ी छोड़ कर मजदूरी करना ज्यादा फायदेमंद समझ लिया है। जो किसान अभी भी खेती बाड़ी में शामिल हैं वो या तो काफी निर्धन है या कर्ज के बोझ से दबे हैं। अक्सर ऐसा होता है कि किसान ट्रैक्टर खरीदने के लिए, बैल खरीदने के लिए या खेती मैं प्रयोग होने वाले औजार के लिए ऋण लेता है और उसे पर ऊंचे ऊंचे ब्याज दर पर ऋण नहीं चुका पाता और बदले में या तो उनकी ज़मीन या उनका ट्रैक्टर या उनके बैल को ही वसूली वाले ले लेते हैं। बेचारा किसान हताश और निराश होकर अपनी जीवनलीला समाप्त करना ही सरल सहज महसूस करता है। विगत के वर्षों में ऐसी कई घटनाएं हुई है जहां खेतिहर किसानों ने आत्महत्या की है। सरकार अक्सर किसानों से पक्षपात ही करता रहा है , कई बार ऐसे वैसे वादों में फंसा कर किसान को केवल लाभ अर्जन का साधन माना गया है। सरकार तो सरकार गांव के जमींदार भी किसानों का केवल दोहन ही करते हैं। मुझे ब्याज दर पर उन्हें ऋण देकर उनकी जमीनी गिरवी रख लेते हैं और बाद में उसे पर अपना अधिकार बना लेते है। कुल मिला कर किसान को न देश से न प्रदेश से कोई खास सहयोग प्राप्त हो पाता है। एक दौर था जब पीढ़ी दर पीढ़ी लोग खेती को ही अपना व्यवसाय मानते थे और इसी में रत रहते थे पर अब तो स्थिति ऐसी है कि किसान का बेटा स्वयं भी किसान के रूप में जीवन जीने से कतराता है दूर भागता है । उसे एक पल के लिए अन्य राज्यों में जा कर मेहनत मजदूरी करना स्वीकार है पर अपने गांव में किसान बनना नहीं पसंद। किसानों के विकास के लिए राज्य और देश की सरकारों को कुछ बेहतर प्रयास करना चाहिए। उन्हे चाहिए की उनके ऋण को माफ कर दे, आवश्यक सामग्री उन्हें सस्ते दामों पर उपलब्ध कराई जाये। कहा जाता है कि देश की आत्मा उसके गांव में बसती है। ऐसे में देश के विकास के लिए विशेष रूप से गांवों का विकास सुनिश्चित करना चाहिए। भारत जैसे देश में जय जवान जय किसान का नारा तो कई वर्षो से चला आ रहा है पर यह केवल उक्तियों में ही दर्शनीय है। वास्तव में जय तो केवल पूंजीपतियों और नेताओं की हो रही है। कृषि मंत्री अपने कार्यकाल के बाद जिस गति से धनाढ्य हो रहें किसान उसी गति से मजबूर, लाचार और बेबस होता जा रहा है। समय रहते यदि इस पर विचार विमर्श न किया गया तो स्थिति और दुभर होगी।
 © अमित पाठक शाकद्वीपी 

Tuesday, June 4, 2024

राधे कृष्णा

राधा के मन श्याम बसे, 
और श्याम के मन बसी राधा, 
सब एक दूजे को सौंप दिया, 
अब सब कुछ है आधा आधा।

ये तन आधा और मन आधा 
फिर प्रेम मिलन को क्यों बाधा,
जब ह्रदय ह्रदय से मिल ही गए ,
और नैनो से नैनन को साधा।

मस्तक पर देखो मयूर पंख लगे,
नैना बस नैनो को अपलक तके 
गले सोहे मुक्तन की माला,
राधा गोरी कान्हा काला।

है रूप मनोहर तन सुन्दर,
हरि हरिप्रिया संग सोहे घर घर,
ये मेल है नारी से नर का,
जो आनन्द देता अमर अजर।

कानो में कुंडल शोभित है,
भक्तो की आंखे मोहित है।
इस दिव्य छवि के दर्शन की, 
मन में अभिलाषा अगणित है।

© अमित पाठक शाकद्वीपी 

Monday, June 3, 2024

शिव वंदना

जय शंभू शशि शेखर सुन्दर,
जय नाथ दिगंबर शिव शंकर,
गिरिजा संग तेरा वास प्रभु,
जन जन को दे उल्लास प्रभु।

पर्वत पर डेरा डाले हो,
महादेव बड़े मतवाले हो,
तुम सौम्य कभी और रौद्र कभी,
अद्भुत है तेरा रूप सभी।

प्रभु तन पे राख लपेटे हो,
जग की यह डोर समेटे हो,
यह जग बस तेरी माया है,
यह सृष्टि तूने रचाया है।

हम सब तेरी संतान प्रभु,
कर दो सबका कल्याण प्रभु,
सब माया तृष्णा दूर रहें,
यह जिह्वा बस तेरा नाम कहे।

या मुझे बसा लो संग तेरे,
या संग में मेरे वास करो,
अब शक्ति दो या मुक्ति दो,
प्रभु अंत समय तक भक्ति दो।

इस दास की विनती सुनो गुरुवर,
प्रभु थोड़ी तो दया करो मुझ पर,
किसी रूप में तो स्वीकार करो,
मेरा भी बेड़ा पार करो।

प्रभु नैया मेरी डोल रही,
आ जाओ भंवर से पार करो,
मानो न मानो पर सत्य यही,
इन शब्दों में है जो भी कही।

बिन तेरे कौन सहारा हो,
बस तेरा ही तेरा नजारा हो,
हम हो तो गए तेरे दास प्रभु,
बस आस लगी तू हमारा हो।

सब कुछ तुझको सौप दिया, है सब कुछ तेरे हाथ।
बार बार विनती करूं , प्रभु रोज नवाऊं माथ।।

© अमित पाठक शाकद्वीपी 

प्रभु श्री कृष्ण

कितना सुंदर रूप मनोहर मन को हरता जाता है,
जो देखें ये छवि निराली भव सागर तर जाता है।

मुख मंडल पर दिनकर सा यूं तेज बिखरता जाता है,
मानो सूरज इन किरणों से प्रभु का रूप सजाता है।

मृदुल मृदुल वंशी की धुन पर सारे जग को मोह लिया,
वंशी वाले ने जन-जन को जाने कितना स्नेह दिया।

बनकर ग्वाला गाय चराई, गोपो का उद्धार किया,
हाय द्वारिकाधीश वो सुंदर, ग्रामीण जीवन स्वीकार किया।

नेह लगाया राधिका से, प्रेम का यूं विस्तार दिया, 
प्रेम के बंधन में ही बंध कर, मीरा को भी तार दिया।

जिनके नैनन शशि दिवाकर, ज्योत अखंड परिपूर्ण करें,
मानो दर्शन देकर प्रभु जी, सबका जीवन सम्पूर्ण करें।

जैसे नीलमणि सम सुन्दर, तन की शोभा महती है,
हृदय निरंतर राधा राधा, बस राधा राधा कहती है।

शब्द सीमित में उनका वर्णन कर पाना तो मुश्किल है,
यूं समझो के लेखनी मेरी प्रभु सेवा में शामिल है।

© अमित पाठक शाकद्वीपी 

श्री मदन मुरारी कृष्ण

उनके मुख की ज्योति जस ज्योति, अनुपम रूप क्या उपमा होती। उनका पानी जैसे पानी, मंद मृदुल मुस्कान सुहानी। वाणी जैसे शहद अधर पर, सुनना चाहूं ठहर...