राधा के मन श्याम बसे,
और श्याम के मन बसी राधा,
सब एक दूजे को सौंप दिया,
अब सब कुछ है आधा आधा।
ये तन आधा और मन आधा
फिर प्रेम मिलन को क्यों बाधा,
जब ह्रदय ह्रदय से मिल ही गए ,
और नैनो से नैनन को साधा।
मस्तक पर देखो मयूर पंख लगे,
नैना बस नैनो को अपलक तके
गले सोहे मुक्तन की माला,
राधा गोरी कान्हा काला।
है रूप मनोहर तन सुन्दर,
हरि हरिप्रिया संग सोहे घर घर,
ये मेल है नारी से नर का,
जो आनन्द देता अमर अजर।
कानो में कुंडल शोभित है,
भक्तो की आंखे मोहित है।
इस दिव्य छवि के दर्शन की,
मन में अभिलाषा अगणित है।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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