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Saturday, June 8, 2024

कृषक

कृषक :  कृषक या किसान वह व्यक्ति है जिसका जीवन मूल रूप से खेती पर निर्भर है। भारत जैसे विकासशील देश में लगभग 70% जनसंख्या खेती पर निर्भर है और अनाज उपजाकर देश का भरण पोषण कर रही है। विगत कुछ वर्षों में मंहगाई के कारण या कई गलत कृषि नीतियों के कारण कृषकों का जीवन यापन कठिन होता चला आया है। एक ओर जहां सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य द्वारा कृषको को प्रोत्साहन देती है वहीं दूसरी ओर किसानों को सीधे अपनी फसल मंडी में बेचने पर मनाही है, बिचौलिए उन से उनकी फसल खरीद कर उसे ऊंचे दाम पर बेचते हैं जिसका उचित लाभ भी उन किसानों को नहीं मिलता। स्थिति ऐसी है कि कई किसानों ने तो खेती बाड़ी छोड़ कर मजदूरी करना ज्यादा फायदेमंद समझ लिया है। जो किसान अभी भी खेती बाड़ी में शामिल हैं वो या तो काफी निर्धन है या कर्ज के बोझ से दबे हैं। अक्सर ऐसा होता है कि किसान ट्रैक्टर खरीदने के लिए, बैल खरीदने के लिए या खेती मैं प्रयोग होने वाले औजार के लिए ऋण लेता है और उसे पर ऊंचे ऊंचे ब्याज दर पर ऋण नहीं चुका पाता और बदले में या तो उनकी ज़मीन या उनका ट्रैक्टर या उनके बैल को ही वसूली वाले ले लेते हैं। बेचारा किसान हताश और निराश होकर अपनी जीवनलीला समाप्त करना ही सरल सहज महसूस करता है। विगत के वर्षों में ऐसी कई घटनाएं हुई है जहां खेतिहर किसानों ने आत्महत्या की है। सरकार अक्सर किसानों से पक्षपात ही करता रहा है , कई बार ऐसे वैसे वादों में फंसा कर किसान को केवल लाभ अर्जन का साधन माना गया है। सरकार तो सरकार गांव के जमींदार भी किसानों का केवल दोहन ही करते हैं। मुझे ब्याज दर पर उन्हें ऋण देकर उनकी जमीनी गिरवी रख लेते हैं और बाद में उसे पर अपना अधिकार बना लेते है। कुल मिला कर किसान को न देश से न प्रदेश से कोई खास सहयोग प्राप्त हो पाता है। एक दौर था जब पीढ़ी दर पीढ़ी लोग खेती को ही अपना व्यवसाय मानते थे और इसी में रत रहते थे पर अब तो स्थिति ऐसी है कि किसान का बेटा स्वयं भी किसान के रूप में जीवन जीने से कतराता है दूर भागता है । उसे एक पल के लिए अन्य राज्यों में जा कर मेहनत मजदूरी करना स्वीकार है पर अपने गांव में किसान बनना नहीं पसंद। किसानों के विकास के लिए राज्य और देश की सरकारों को कुछ बेहतर प्रयास करना चाहिए। उन्हे चाहिए की उनके ऋण को माफ कर दे, आवश्यक सामग्री उन्हें सस्ते दामों पर उपलब्ध कराई जाये। कहा जाता है कि देश की आत्मा उसके गांव में बसती है। ऐसे में देश के विकास के लिए विशेष रूप से गांवों का विकास सुनिश्चित करना चाहिए। भारत जैसे देश में जय जवान जय किसान का नारा तो कई वर्षो से चला आ रहा है पर यह केवल उक्तियों में ही दर्शनीय है। वास्तव में जय तो केवल पूंजीपतियों और नेताओं की हो रही है। कृषि मंत्री अपने कार्यकाल के बाद जिस गति से धनाढ्य हो रहें किसान उसी गति से मजबूर, लाचार और बेबस होता जा रहा है। समय रहते यदि इस पर विचार विमर्श न किया गया तो स्थिति और दुभर होगी।
 © अमित पाठक शाकद्वीपी 

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