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Monday, July 31, 2023

शिव पार्वती प्रसंग

मां  पार्वती धन्य हुई,महादेव सा वर पाकर।
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बाल्य काल में तप के बल शिव जी से वर ये पाया था।
भूखे प्यासे कर के तपस्या उनके आसन को डगमगाया था।।
अड़ी रही कि उन बीन कोई न जीवन का मेरे आधार होगा ।
होने को बस वही होंगे सब , उनसे ही मेरा सोलह श्रृंगार होगा।।

डटी रही अपनी कथनी पर , शिव को सब समर्पण कर ।
रोम रोम में शिव को बसाया , शिव शिव जपते थे ये अधर ।।
घने वन मे बना कर कंद्रा करती शिव का पूजन ।
निराहार रही कभी , कभी किए कंद मूल फल भोजन।।

समय परम प्रबल और पावन , आया जब सर्वेश । 
लेने को फिर प्रेम परीक्षा आए स्वयं महेश।।
बोले प्रसन्न हूं वर मांगो कोई नेक ।
बोलीं पार्वती यूं हंसकर, है मन में भाव अनेक ।।

फिर सबसे बड़ी यह इच्छा आप संग हो यूं योग।
पति रूप में आन मिलो तो अद्भुत हों संयोग।
हर्षित मन से शिव शंकर ने दिए मन अभिलाषित वर ।
धन्य हो गई माता पार्वती महादेव को पाकर, उनसे ब्याह रचाकर ।।
                      – अमित पाठक शाकद्वीपी 

Monday, July 17, 2023

शिव वंदना

#मनहरण घनाक्षरी
# विश्वनाथ वंदना 
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जय देव दिवाकर , मणि ताज सुधाकर
तन भस्म रमाकर, धरणीधर गहे ।

सर्प हार बनाकर , मृग छाल सजाकर
गुरु देव दया कर , ह्रदय वास रहे।

भूषित छवि सुंदर , जय श्री करुणाकर
पूजे देव निशाचर , जटा से गंग बहे।

जय पशुपति शंकर , उमापति जै भूधर
अति रूप मनोहर ,  तिनहु लोक कहे।

©️✍️ अमित पाठक शाकद्वीपी 

क्षणे क्षणे कृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।
पुस्तकं धारयेत् एही आरोग्य भयनाशनम् ।।

हर हर महादेव , जय शिव शम्भू 🙏

Sunday, July 16, 2023

राम धुनि

राम धुनि : मनहरण घनाक्षरी
( सादर समीक्षार्थ समर्पित)
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विजय विश्वास लिए, राम रस पान किए 
भक्ति विधान का जरा, मार्ग ढूंढ आईए।

दिन रात आठों याम, राम राम लिए नाम 
गाईये भजन कोई , औरों से गवाईए।

हो दिव्य साधना तेरी , है बज रही बांसुरी 
धरिए ध्यान राम का, महा सुख पाइये।

राम गुण राम धुन , राम बोल राम सुन
प्रतिमा राम सीता की , मन मे बसाइये ।
                             – अमित पाठक शाकद्वीपी 

Friday, July 14, 2023

नाविक

#शीर्षक : नाविक
#विधा : स्वैच्छिक
# विषय : चित्र आधारित 
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जल पथ पर निकली यूं नौका धीरे धीरे
लिए हाथ पतवार ये नाविक खेता तीरे तीरे

लिए अडिग विश्वास हृदय में धारा पार कराता जाता है
अपनी क्षमता के तपबल से लहरों पर मार्ग बनाता है

किस ओर किनारा मिल जाए , कब साहिल से पानी टकराए
कब हासिल हो मंजिल , कब अंधियारा ये छट जाए

कब मान मिले , कब मोल मिले , बस आस लगाए बैठा है
टूटी सी एक कुटिया में परिवार समेत ये रहता है

रात हुईं घर लौट रहा , है कुछ अरमान भी इसके नजरो में
क्यूं डूबी नहीं मुफलिसी इसकी मझधार के उन लहरों में

है कौन यहां प्रदिप्त भला जो इसका भी कुछ भान धरे
महाप्रतापी योद्धा बन नित तूफानों से युद्ध करे

सागर की अपनी क्षमता है ,पर माँझी भी कब थकता है
संकल्प लिए के डटे रहेंगे माँझी हमसे कहता है 

नाविक की तरह ही जीवन में जब लहरों से साक्षात्कार हो
लिए विजय विश्वास हृदय में हम सबकी नैया पार हो
                                 – अमित पाठक शाकद्वीपी 

Thursday, July 13, 2023

कविता और रद्दीवाला : अमित पाठक

कविता और रद्दीवाला
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एक रोज रद्दी वाला मेरे द्वार पर आया ।
मैने उसे भीतर बुलाया, हाल चाल जान लिया
पूछा आज कितना कमाया?

उत्तर में उसने दबे स्वर में बताया ।
सर आज तो आज का भी गुजारा न कर पाया ।।

सुबह से शाम तक भटका हूं बेमतलब ।
कौड़ी भर भी आमदनी का आज हिसाब नहीं आया ।।

मैंने कहा यूं न अब उदास हो ।
मुझे भी है कुछ बेचना, लाता हूं जो भी मेरे पास हो ।।

लाए गए फिर संदूक में बंद मेरी कॉपियां ।
वक्त का एक दौर मैंने था जिनमें जिया ।।

लिखी थी मेरी लिखावट में कुछ काव्य अंश झलकियां ।
कुछ जीवन के अनुभव थे कुछ थी उनमें मस्तियां ।।

बढ़ा दिया उनको , पूछा दाम क्या लगाओगे ?
बोला मुस्कुराते हुए दस किलो है वजन , आप बीस रुपए पाओगे ।।

शब्दों से रची कल्पना का ये कैसा मोल था ।
एक उम्र में कभी जिनका अमूल्य रोल था ।।

ठीक ठीक लगालो दाम बहुत कम है
कहता है रद्दीवाला, दीमक लगी है कॉपियां और फिर वजन भी तो कम है ।।

ठीक है तय करता हूं रुपए तीस पर ।
आ गया गुस्सा मुझे इसी चीज़ पर ।।

कहा कि दिन भर की कमाई का सब भार मुझसे चूकाओगे ?
ठग रहे हो मुझे ऊंची दुकान में तुम इसका पांच गुणा कमाओगे ।।

कहने लगा रद्दी वाला आप स्वयं पता लगाइए ।
कविता की कीमत का ज़रा भेद जान आइए ।।

बिखरी रहती है पुस्तकें कोई उन्हें छूता नहीं ।
मैं हूं मन का सच्चा मैने किसी को लुटा नहीं ।।

रखिए सहेज इन्हे इनका न अब कोई भाव है ।
अपको बड़ी आत्मीयता है इनसे , इतना क्यों लगाव है?

भाव मेरे मन के मेरे नयनो में चढ़ गए ।
नहीं बेचनी है कविता मुझे हम रद्दी वाले से लड़ गए ।।

दुबारा नए पृष्ठ पर उन कविताओं को सहेज कर ।
रखा है सुरक्षित से एक मेज पर ।।

प्रतिदिन उनको पढ़ता हूं समझता हूं ।
धारा में उन कविताओं की मैं बेलगाम बहता हूं ।।

ये कविता लेखन है मेरी वृति मेरा शौक मेरा सपना ।
मैं अपनी आपबीती इन्ही कविताओं में कहता हूं ।।
                                – अमित पाठक शाकद्वीपी 

शिव वंदना : लघु रूप

जटा से जिनकी गंगा धार नित्य प्रतिदिन बहे,
गले में जिनके वासुकी हार सा लिपटा रहे ।
जिनके डमरू नाद की ध्वनि का यूं प्रसार है,
कि स्वरों में डमरू नाद भी सदैव शिव शिव कहे ।।

जो मां पार्वती के संग दिव्यता के मूल हैं,
जिनमें रमी सृष्टि सारी जिनके हाथो में त्रिशूल है ।
आभार में खड़े हैं जिनके देवता असुर,
सब शिव में निमग्न हो सदैव शिव शिव कहे ।।

मस्तक पे जिनके चंद्रमा विराजमान है शीतलता लिए,
चिता के भस्म राख ने हैं जिनके तन का श्रृंगार किए।
रक्षा में जिसने सृष्टि की , है कालकुट विष पिए,
है देव के भी देव वो , सौम्यता और क्रोध को जो दोनों एक साथ जिए ।।

देव दानव नारी नर , पशु पक्षी चर अचर ,
गान उनके नाम का , है कर रहा अधर अधर।
जो दिव्य ज्योति रुप में हृदय में मेरे बस रहें,
रोम रोम श्वास श्वास करती हैं उनकी वन्दना
सदैव शिव शिव कहे , सदैव शिव शिव कहे ।।
                                     – अमित पाठक शाकद्वीपी



उनके नैना जैसे जादू

उनके नैना जैसे जादू  ••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• उनके नैना जैसे जादू , सब   को मोहे जाए, झील सरिस हाय इन नैनन में ...