गले में जिनके वासुकी हार सा लिपटा रहे ।
जिनके डमरू नाद की ध्वनि का यूं प्रसार है,
कि स्वरों में डमरू नाद भी सदैव शिव शिव कहे ।।
जो मां पार्वती के संग दिव्यता के मूल हैं,
जिनमें रमी सृष्टि सारी जिनके हाथो में त्रिशूल है ।
आभार में खड़े हैं जिनके देवता असुर,
सब शिव में निमग्न हो सदैव शिव शिव कहे ।।
मस्तक पे जिनके चंद्रमा विराजमान है शीतलता लिए,
चिता के भस्म राख ने हैं जिनके तन का श्रृंगार किए।
रक्षा में जिसने सृष्टि की , है कालकुट विष पिए,
है देव के भी देव वो , सौम्यता और क्रोध को जो दोनों एक साथ जिए ।।
देव दानव नारी नर , पशु पक्षी चर अचर ,
गान उनके नाम का , है कर रहा अधर अधर।
जो दिव्य ज्योति रुप में हृदय में मेरे बस रहें,
रोम रोम श्वास श्वास करती हैं उनकी वन्दना
सदैव शिव शिव कहे , सदैव शिव शिव कहे ।।
– अमित पाठक शाकद्वीपी
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