# विश्वनाथ वंदना
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जय देव दिवाकर , मणि ताज सुधाकरतन भस्म रमाकर, धरणीधर गहे ।
सर्प हार बनाकर , मृग छाल सजाकर
गुरु देव दया कर , ह्रदय वास रहे।
भूषित छवि सुंदर , जय श्री करुणाकर
पूजे देव निशाचर , जटा से गंग बहे।
जय पशुपति शंकर , उमापति जै भूधर
अति रूप मनोहर , तिनहु लोक कहे।
©️✍️ अमित पाठक शाकद्वीपी
क्षणे क्षणे कृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।
पुस्तकं धारयेत् एही आरोग्य भयनाशनम् ।।
हर हर महादेव , जय शिव शम्भू 🙏
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