मां पार्वती धन्य हुई,महादेव सा वर पाकर।
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बाल्य काल में तप के बल शिव जी से वर ये पाया था।
भूखे प्यासे कर के तपस्या उनके आसन को डगमगाया था।।
अड़ी रही कि उन बीन कोई न जीवन का मेरे आधार होगा ।
होने को बस वही होंगे सब , उनसे ही मेरा सोलह श्रृंगार होगा।।
डटी रही अपनी कथनी पर , शिव को सब समर्पण कर ।
रोम रोम में शिव को बसाया , शिव शिव जपते थे ये अधर ।।
घने वन मे बना कर कंद्रा करती शिव का पूजन ।
निराहार रही कभी , कभी किए कंद मूल फल भोजन।।
समय परम प्रबल और पावन , आया जब सर्वेश ।
लेने को फिर प्रेम परीक्षा आए स्वयं महेश।।
बोले प्रसन्न हूं वर मांगो कोई नेक ।
बोलीं पार्वती यूं हंसकर, है मन में भाव अनेक ।।
फिर सबसे बड़ी यह इच्छा आप संग हो यूं योग।
पति रूप में आन मिलो तो अद्भुत हों संयोग।
हर्षित मन से शिव शंकर ने दिए मन अभिलाषित वर ।
धन्य हो गई माता पार्वती महादेव को पाकर, उनसे ब्याह रचाकर ।।
– अमित पाठक शाकद्वीपी
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