#विधा : स्वैच्छिक
# विषय : चित्र आधारित
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जल पथ पर निकली यूं नौका धीरे धीरे
लिए हाथ पतवार ये नाविक खेता तीरे तीरे
लिए अडिग विश्वास हृदय में धारा पार कराता जाता है
अपनी क्षमता के तपबल से लहरों पर मार्ग बनाता है
किस ओर किनारा मिल जाए , कब साहिल से पानी टकराए
कब हासिल हो मंजिल , कब अंधियारा ये छट जाए
कब मान मिले , कब मोल मिले , बस आस लगाए बैठा है
टूटी सी एक कुटिया में परिवार समेत ये रहता है
रात हुईं घर लौट रहा , है कुछ अरमान भी इसके नजरो में
क्यूं डूबी नहीं मुफलिसी इसकी मझधार के उन लहरों में
है कौन यहां प्रदिप्त भला जो इसका भी कुछ भान धरे
महाप्रतापी योद्धा बन नित तूफानों से युद्ध करे
सागर की अपनी क्षमता है ,पर माँझी भी कब थकता है
संकल्प लिए के डटे रहेंगे माँझी हमसे कहता है
नाविक की तरह ही जीवन में जब लहरों से साक्षात्कार हो
लिए विजय विश्वास हृदय में हम सबकी नैया पार हो
– अमित पाठक शाकद्वीपी
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