शर्मा जी की गाय
******************************
गाँव के एक कोने में रामलाल का घर था। रामलाल के पास एक ही चीज़ थी जिस पर वह गर्व करता था—उसकी दूध देने वाली गाय। वह गाय न केवल उसके घर का पालन-पोषण करती थी, बल्कि गाँव के कई लोगों को भी दूध मुहैया कराती थी।
रामलाल के पड़ोस में रहते थे शर्मा जी। बाहर से बड़े भले और मददगार लगते थे, लेकिन दिल से स्वार्थी थे। एक दिन शर्मा जी ने रामलाल से कहा, "भाई, मेरी बेटी की शादी है। मुझे तुम्हारी गाय कुछ दिनों के लिए चाहिए। मेरे घर मेहमान आएंगे, तो दूध की ज़रूरत पड़ेगी।"
रामलाल नेकदिल इंसान था। उसने बिना किसी हिचकिचाहट के गाय शर्मा जी को दे दी। कुछ दिनों बाद जब रामलाल ने अपनी गाय वापस माँगी, तो शर्मा जी बहाने बनाने लगे।
"अरे भाई, गाय तो बीमार हो गई है। तुम कुछ दिन और इंतज़ार कर लो," शर्मा जी ने कहा।
दिन महीने में बदल गए, लेकिन रामलाल को गाय वापस नहीं मिली। जब वह गाय के लिए शर्मा जी के घर गया, तो उसने देखा कि गाय को बेच दिया गया है। यह देखकर रामलाल का दिल टूट गया।
रामलाल ने दुखी होकर कहा, "शर्मा जी, मैंने आप पर भरोसा किया था। आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।"
शर्मा जी ने ठंडी साँस लेते हुए कहा, "क्या करूँ भाई, मजबूरी थी।"
गाँव वालों को जब यह बात पता चली, तो सभी ने शर्मा जी की आलोचना की। रामलाल को न्याय दिलाने के लिए पंचायत बुलाई गई। पंचायत ने फैसला सुनाया कि शर्मा जी को गाय की पूरी कीमत चुकानी होगी और रामलाल से माफ़ी माँगनी होगी।
इस घटना ने एक बात साफ़ कर दी—भरोसा सबसे कीमती चीज़ है। शर्मा जी ने रामलाल के भरोसे को तोड़कर अपनी इज़्ज़त भी खो दी।
निष्कर्ष: कभी किसी का भरोसा न तोड़ें, क्योंकि यह वो धन है जो एक बार टूटने पर कभी वापस नहीं आता।