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Tuesday, January 21, 2025

बहती धारा

धन्य धरा का धाम धरोहर,
बहता जल अविराम मनोहर।
कल कल करता बहता जाता,
पग पग अपना पथ बनाता।।

तट पर जिसके वृक्ष सजे हैं,
वेग पाकर जो लरजे हैं।
हरे भरे तरुवर की प्राण,
फिर भी न कोई अभिमान।।

हरियाली को पोषित करती,
बूंद बूंद से सिंचित धरती।
लिए अटल विश्वास हृदय में,
बहती यूँ ही प्रकृति प्रलय में।।

सबकी प्यास बुझाती जाती,
मन उल्लास जगाती जाती।
करती सबके तन को निर्मल,
शीतल जल बहे बस निश्चल।।

© अमित पाठक शाकद्वीपी 




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