जय श्री श्याम प्रभु
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राधा के मन यूँ बंधे,
ज्यों बाँधे कोई डोर।
नेह प्रीत अनंत प्रभु,
दिखता न कोई छोर।।
मोहन तेरे मोह मगन,
पशु पक्षी आकाश गगन।
मुझ राधा को वश में करते,
कान्हा के वाणी और मन।।
मंद मंद मुस्कान मनोहर,
मोर पंख मस्तक के ऊपर।
मुख की शोभा सूरज सम सुंदर,
प्रभु बसते हैं कण कण अंदर।।
नैनों से नूतन जादू सा डाला,
गल बीच शोभित वनमाला।
क्या गोपी क्या गोप ग्वाल जी,
सभे निहारत नंदलाल जी।।
प्रेम सुधा भी प्रतिपल बरसे,
मन ही मन में हर जन हरसे।
हे नाथ हे जग के नायक,
दुःख हर्ता जन जन सुखदायक।।
राधे कृष्ण की युगल छवि का
अद्भुत मिला आनंद।
जय जय जय वृषभान दुलारी
जय श्री सच्चिदानंद।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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