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Tuesday, February 27, 2024

महादेव


तन श्यामल विमल विनीत विभो,
संग में गिरजा अती प्रसन्न प्रभो।
जय देव दयालु उमा शंकर,
प्रभु वास करें कंकड़ कंकड़।।

जब शिवा शिवानी संग रहे,
उसे पल की उपमा क्या ही कहें?
देवी के मुख की आभा सुंदर,
अद्भुत छवि में भोले शंकर।।

माथे त्रिपुंड चंदन सोहे,
और शीश शशि मेरो मन मोहे।
आनंद के पल देखूं पल पल,
दर्शन से हो जीवन ये सफल।।

जैसे नंदी को स्थान दिया,
विषधर को जैसा मान दिया।
हे शंभू महेश दिनेश सुनो,
मुझको भी अपना भक्त चुनो।।

जग मात पिता सम दोनों विभु,
बस दरश करूं अब कुछ ना कहूं।
जब दिव्य रूप देखूं इनका,
तब कष्ट मिटे मेरे तन मन का।।

गर त्रुटि रही तो क्षमा करना,
स्वीकार करो बालक अपना।
शब्दों में मैं व्याख्यान करूं,
हर हर महादेव गुणगान करूं।।

© अमित पाठक शाकद्वीपी


Monday, February 26, 2024

साहित्यिक चोरी

आईए आज बात करते हैं साहित्य क्षेत्र में चोरियों की। साहित्य क्षेत्र में चोरियां आज एक आम परंतु दिन-ब-दिन बढ़ती घटना के रूप में पैर पसार रही है। लोग सृजन को लेकर आतुर तो हैं परंतु जब उनकी रचना कलात्मक ढंग से मापदंडों पर सही नहीं उतरती तो ऐसे में किसी बेहतर लिखे हुए कृति से चीजें कॉपी कर ली जाती है और किसी स्रोत को उसका श्रेय भी नहीं दिया जाता। देखने में यह तो एक आम स्थिति लगती है परंतु इसके दुष्परिणाम बहुत भयावह हो सकते हैं। आपको कानूनी और नैतिक दोनों दृष्टि से दंड भोगने पड़ सकते हैं। देश में निजता को लेकर बहुत ही सख्त कानून बन गए हैं, ऐसे में यदि आप किसी अन्य व्यक्ति की कृति, फोटो, रचना या लेख में से कोई अंश चुराकर अपने सृजन में उसका उपयोग करते हैं और जिसका कोई भी श्रेय आपने संबंधित व्यक्ति को नहीं दिया है तो यदि वह व्यक्ति चाहे तो आप पर कानूनी कार्यवाही कर सकता है।

क्या है साहित्यिक चोरी ?

👉 किसी दूसरे की भाषा, विचार, उपाय, शैली आदि का अधिकांशतः नकल करते हुए अपने मौलिक कृति के रूप में प्रकाशन करना साहित्यिक चोरी (Plagiarism) कहलाती है। 

साहित्यिक चोरी के भिन्न भिन्न रूप:–
१. प्रत्यक्ष साहित्यिक चोरी : प्रत्यक्ष साहित्यिक चोरी ठीक वैसी ही है जैसी यह लगती है। यह तब होता है जब कोई उचित प्रशस्ति पत्र या क्रेडिट प्रदान किए बिना दूसरे के काम की नकल करता है और इसके बजाय काम को अपना बताने की कोशिश करता है।

२. मौज़ेक साहित्यिक चोरी : मोज़ेक साहित्यिक चोरी तब होती है जब कोई अन्य स्रोतों से प्रतिलिपि के विभिन्न टुकड़े लेता है और उन्हें एक साथ जोड़कर एक नया टुकड़ा बनाता है और इसे अपने स्वयं के मूल कार्य के रूप में पास करता है।

३.आकस्मिक साहित्यिक चोरी : सीधे शब्दों में कहें तो आकस्मिक साहित्यिक चोरी तब होती है जब कोई अनजाने में किसी स्रोत को गलत तरीके से उद्धृत करता है या ठीक से उद्धृत करना भूल जाता है। यह उद्धरण चिह्नों का उपयोग करना भूलने जितना आसान भी हो सकता है।

४.टीका साहित्यिक चोरी : यदि आप किसी और के काम को लेते हैं, तो इसे थोड़ा सा शब्द देते हैं, और फिर स्रोत का हवाला दिए बिना इसे अपना मान लेते हैं, तो साहित्यिक चोरी होती है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यदि आप स्रोत का हवाला देते हैं तो व्याख्या करना साहित्यिक चोरी नहीं है।

५. खुद-साहित्यिक चोरी : यदि कोई प्रोफेसर की अनुमति के बिना अपने स्वयं के काम का पुन: उपयोग करता है, तो इसे स्व-साहित्यिक चोरी माना जाएगा। प्रकाशन के मामले में, लेखक को यह ध्यान रखना चाहिए कि उद्धरण में वे सभी कार्य शामिल होने चाहिए जिनका उपयोग वे संदर्भ के रूप में कर रहे हैं, भले ही कार्य उसी लेखक का पिछला कार्य हो अन्यथा, वे अंत में खुद की साहित्यिक चोरी कर सकते हैं।

👉 आप उपयोग करते समय साहित्यिक चोरी को कैसे परिभाषित करते हैं  : 
 यदि आप स्रोत का उल्लेख किए बिना या कुछ मामलों में कलाकार से अनुमति प्राप्त किए बिना अपने काम में छवियों, वीडियो या संगीत का उपयोग कर रहे हैं, तो इसे साहित्यिक चोरी माना जाएगा। यहां कुछ ऐसे उदाहरण दिए गए हैं जिन्हें छवियों, वीडियो और संगीत का उपयोग करते समय साहित्यिक चोरी माना जा सकता है :
       ✓ यदि आप किसी इमेज को कॉपी करते हैं और स्रोत को श्रेय दिए बिना इसे अपने काम के लिए उपयोग करते हैं।

       ✓ अगर किसी के द्वारा निर्मित संगीत आंशिक रूप से या पहले से मौजूद संगीत के समान है, बिना किसी क्रेडिट या पहले से मौजूद टुकड़े की पावती के।
      
        ✓अनुमति के बिना या स्रोत का उल्लेख किए बिना कॉपीराइट संगीत का प्रदर्शन करना।
       
        ✓अनुमति या क्रेडिट के बिना अपने स्वयं के वीडियो में वीडियो के कुछ हिस्सों का उपयोग करना।

        ✓ मूल वस्तु को श्रेय दिए बिना, उसी सेट-अप या ठीक उसी विचार के साथ किसी पेंटिंग या छवि को फिर से बनाना।

        ✓ उपयोग की अनुमति के बिना पृष्ठभूमि में चल रहे कॉपीराइट संगीत के साथ एक वीडियो क्लिप शूट करना।
        
        ✓ कॉपीराइट वाली किसी भी सामग्री का अवैध वितरण साहित्यिक चोरी माना जाएगा और इसलिए दंडनीय होगा।

# साहित्यिक चोरी के सामान्य परिणाम
यदि आप साहित्यिक चोरी के परिणामों से अवगत नहीं हैं और आपको इससे क्यों बचना चाहिए, तो उस सूची पर एक नज़र डालें जिसे हमने नीचे संकलित किया है!
१. प्रतिष्ठा को नष्ट कर देना : 
यदि आप पर एक छात्र के रूप में साहित्यिक चोरी का आरोप लगाया गया है, तो आपको पता होना चाहिए कि आपको आसानी से निलंबित किया जा सकता है या इससे भी बदतर, बिना किसी चेतावनी के आपके स्कूल से निष्कासित किया जा सकता है। आपका शैक्षणिक रिकॉर्ड एक अवैध और अनैतिक अपराध को प्रतिबिंबित करेगा जो आपकी प्रतिष्ठा और शैक्षणिक अखंडता को बर्बाद कर देगा।एक पेशेवर लेखक, सार्वजनिक व्यक्ति या यहां तक कि एक व्यवसायी के रूप में, आपको पता होना चाहिए कि साहित्यिक चोरी के कारण आप अपनी पेशेवर विश्वसनीयता खो सकते हैं। इस बात की संभावना हमेशा बनी रहती है कि आपको अपने पद से हटा दिया जाएगा।

२. कानूनी नतीजे :
साहित्यिक चोरी आपको कानूनी रूप से भी नुकसान पहुंचा सकती है, और वह भी बहुत गंभीर रूप से। यदि आप कॉपीराइट से सुरक्षित सामग्री की नकल करते हैं या उसका उपयोग करते हैं, तो आपको न केवल कानूनी दंड का सामना करना पड़ेगा, बल्कि आपराधिक अपराध का भी आरोप लगाया जाएगा। यदि आप जेल में अपनी सजा काट कर अपने अच्छे दिनों का आनंद नहीं लेना चाहते हैं, तो आपको किसी अन्य व्यक्ति की सामग्री का उपयोग करते समय सावधान रहना चाहिए।

३. मौद्रिक प्रभाव
साहित्यिक चोरी का एक और बड़ा परिणाम यह है कि प्रभावित व्यक्ति आप पर ढेर सारे पैसे का मुकदमा कर सकता है। इसलिए यदि आप आर्थिक जुर्माना और जुर्माने का भुगतान नहीं कर सकते हैं, तो आपको साहित्यिक चोरी से दूर रहना चाहिए।

साहित्यिक चोरी में भिन्न भिन्न दंड संहिता : 
👉 भारत में किसी भी क़ानून द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं होने के अधिकार को मान्यता नहीं दी गई है, लेकिन भारतीय कॉपीराइट अधिनियम, 1957 की धारा 57 लेखकों को अन्य कार्यों के बीच अपने कार्यों के लेखकत्व का दावा करने का अधिकार देती है।
👉 भारतीय कॉपीराइट अधिनियम, 1957 की धारा 57 में लेखकों को उनके काम के लिए "विशेष अधिकार" दिए जाने का श्रेय दिया जाता है। यह प्रकृति में एक नैतिक अधिकार और सदा है। क़ानून अधिकारों के अनुरूप अधिकार के अधिकार को मान्यता देता है कि उसे ख़त्म नहीं किया जाना चाहिए।
👉 भारतीय कॉपीराइट अधिनियम, 1957 की धारा 63 का उल्लंघन अपराध के रूप में माना जाता है और दोनों के लिए एक ही सजा अर्थात् धारा 57 का उल्लंघन और कॉपीराइट उल्लंघन का पुरस्कार देता है।
👉दोषी उल्लंघनकर्ताओं को कारावास की सजा दी जाती है  जो अधिनियम की धारा 63 के तहत छह महीने से लेकर तीन साल तक की होती है। उन्होंने उल्लंघन की कार्रवाई के लिए मौद्रिक शब्दों में भी क्षतिपूर्ति की है।
👉 इसी अधिनियम की धारा 63 (ए) दूसरे और बाद के सजाओं के लिए एक बढ़ाया जुर्माना निर्धारित करती है।
                            *******

सावधान रहें सतर्क रहें और साहित्य में चोरी करने से हमेशा दूर ही रहें।

© अमित पाठक शाकद्वीपी 
साहित्य संगम बुक्स प्रकाशन 

Thursday, February 22, 2024

नैतिकता का ज्ञान

नैतिकता के ज्ञान से मिटे सकल अभिमान,
क्या है सही और क्या गलत?, जब हो जाए इसका भान।
कूप मंडुक बन कर कर कोई है परेशान
सब के भीतर एक ही बोध "मैं ही हूं सबसे महान" ।।

न सहायता न प्रेम शेष है , न आदर न सम्मान,
बीरबल की खिचड़ी सा जीवन, बस ख्वाबों के ही विमान।
अपनी गलती कोई न माने बस देते केवल ज्ञान,
मां पिताजी बच्चे से रूठे , मां बाप से फिर संतान।।

कभी कहीं जो सीख थी घर की,
अब उसे है पाठक्रम का सम्मान।
फिर दुनियां जस की तस है,
करें कौन संधान।।

नीति शास्त्र की बात करते थकती नहीं जबान, 
पूछो तो है भी क्या अनुसरण इस तो मूक बधिर इंसान।
सीखो बुजुर्गो से नैतिक शिक्षा तुम, है ये अद्भुत श्रीमान,
सीख गए जब इन मूल्यों को तो जीना है आसान।
             – अमित पाठक शाकद्वीपी 

Friday, February 16, 2024

मुंशी प्रेमचंद

मुंशी प्रेमचंद
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गद्य शिरोमणि लेख प्रिय, थे निश्छल स्वच्छंद,
लमही ग्राम में जन्म लिये, नाम था प्रेमचंद।।

बाल्यकाल में ही लिया लेखन में प्रवेश,
अभाव में जीवन बिता, ग्रामीण था परिवेश।।

कम उम्र की शादी का, अंत बड़ा गमगीन,
असमय ही संबंध विच्छेद हुआ, कम ही बीते थे दिन।।

दूसरी शादी का फिर मिला इन्हें जब बोध,
पत्नी का सहयोग मिला तो किये लेखन में कई शोध।।

उनकी साहित्यिक यात्रा से हिंदी हुई विख्यात,
दुख के दिन लगे बीतने, आया उत्तम प्रभात।।

पूस की रात में ना सोये, ईदगाह के मेले में घूमें,
गोदान की रचना करके, गबन कर्मभूमि लेखन में झूमे।।

धनपत राय उपनाम बनाकर, लिखे कई उपन्यास,
हिंदी को उसकी गरिमा का कराया यूं आभास।।

हीरा मोती की व्यथा सुना कर, दिया संदेश विशेष,
मित्रवत संबंध चाहते, नारी नर पशु खगेश।।

पंच परमेश्वर की कहानी का, ऐसे समझाया ज्ञान,
न्याय के पद की क्या है महिमा? क्या है पद का मान?।।

सामाजिक जीवन को, कथा कहानी में कह डाला,
हिंदी के युग प्रवर्तक का रहा सदा बोल बाला।।

हैं यें अमर अविस्मरणीय, साहित्य जगत के मूल,
नई पीढ़ी के नए लेखको, इन्हें न जाना भूल।।

© अमित पाठक शाकद्वीपी
स्वरचित रचना, अप्रकाशित मौलिक कृति
बोकारो, झारखंड
संपर्क सूत्र : 8935857296

ऐसे है मेरे श्याम

Tuesday, February 13, 2024

मां शारदे

मां शारदे 
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श्वेत हंस पर कर के सवारी आन पड़ो मां देवी दुलारी,
कब से तेरी राह तकूं मैं दर्श मिले तो भाग्य हमारी।

बाएं कर में वीणा सोहे , दाएं में मुक्तन की माला,
ज्ञान अमृत का पान करा दो तब तो मिटे अज्ञान की हाला।

श्वेतांबर में ललित छवि सुन्दर,
मुख की ज्योति बढ़े निरंतर।

ज्ञान क्रिया की देवी दयाला,
भक्तों को वर देती निराला।

मां रुप की तुलना नहीं है,
अनुपम शोभा इतनी प्यारी ।।

श्वेत हंस पर कर के सवारी आन पड़ो मां देवी दुलारी,
कब से तेरी राह तकूं मैं दर्श मिले तो भाग्य हमारी।
© अमित पाठक शाकद्वीपी

अश्कों की सौगात

कहती हैं माँ जानकी,  प्रभु को कर के याद । स्वामी कब तक राह निहारूं  कब आओगे नाथ ।। विधि ने भी क्या भाग्य लिखा है, नियति देती मात...