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गद्य शिरोमणि लेख प्रिय, थे निश्छल स्वच्छंद,
लमही ग्राम में जन्म लिये, नाम था प्रेमचंद।।
बाल्यकाल में ही लिया लेखन में प्रवेश,
अभाव में जीवन बिता, ग्रामीण था परिवेश।।
कम उम्र की शादी का, अंत बड़ा गमगीन,
असमय ही संबंध विच्छेद हुआ, कम ही बीते थे दिन।।
दूसरी शादी का फिर मिला इन्हें जब बोध,
पत्नी का सहयोग मिला तो किये लेखन में कई शोध।।
उनकी साहित्यिक यात्रा से हिंदी हुई विख्यात,
दुख के दिन लगे बीतने, आया उत्तम प्रभात।।
पूस की रात में ना सोये, ईदगाह के मेले में घूमें,
गोदान की रचना करके, गबन कर्मभूमि लेखन में झूमे।।
धनपत राय उपनाम बनाकर, लिखे कई उपन्यास,
हिंदी को उसकी गरिमा का कराया यूं आभास।।
हीरा मोती की व्यथा सुना कर, दिया संदेश विशेष,
मित्रवत संबंध चाहते, नारी नर पशु खगेश।।
पंच परमेश्वर की कहानी का, ऐसे समझाया ज्ञान,
न्याय के पद की क्या है महिमा? क्या है पद का मान?।।
सामाजिक जीवन को, कथा कहानी में कह डाला,
हिंदी के युग प्रवर्तक का रहा सदा बोल बाला।।
हैं यें अमर अविस्मरणीय, साहित्य जगत के मूल,
नई पीढ़ी के नए लेखको, इन्हें न जाना भूल।।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
स्वरचित रचना, अप्रकाशित मौलिक कृति
बोकारो, झारखंड
संपर्क सूत्र : 8935857296
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