क्या है सही और क्या गलत?, जब हो जाए इसका भान।
कूप मंडुक बन कर कर कोई है परेशान
सब के भीतर एक ही बोध "मैं ही हूं सबसे महान" ।।
न सहायता न प्रेम शेष है , न आदर न सम्मान,
बीरबल की खिचड़ी सा जीवन, बस ख्वाबों के ही विमान।
अपनी गलती कोई न माने बस देते केवल ज्ञान,
मां पिताजी बच्चे से रूठे , मां बाप से फिर संतान।।
कभी कहीं जो सीख थी घर की,
अब उसे है पाठक्रम का सम्मान।
फिर दुनियां जस की तस है,
करें कौन संधान।।
नीति शास्त्र की बात करते थकती नहीं जबान,
पूछो तो है भी क्या अनुसरण इस तो मूक बधिर इंसान।
सीखो बुजुर्गो से नैतिक शिक्षा तुम, है ये अद्भुत श्रीमान,
सीख गए जब इन मूल्यों को तो जीना है आसान।
– अमित पाठक शाकद्वीपी
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