वट सावित्री कथा (काव्य रूपेण)
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मद्र देश में रहते थे राजा एक महान सदा दुखी रहते थे नहीं कोई संतान
माँ सावित्री को प्रसन्न किया
किये व्रत जप तप दान
माता के आशीष से हुई
प्रकट कन्या एक गुणवान
राजा के सामने विकट परिस्थिति एक
कन्या के लिए मिले कोई योग्य वर नेक
पिता कहते पुत्री से नहीं ज्ञात कर पा रहा कैसे करू तेरा विवाह
योग्य वर ढूंढ लो स्वयं जैसी तेरी चाह
आज्ञा लेकर वन गयी तो मिले पुरुष अति यशवान
सत्य का आचरण करे नाम था "सत्यवान"
पल भर में ही वशीभूत हुई न्यौछावर किया तन मन
पति रूप में सत्यवान का उसने किया वरण
उदार चरित सत्यवान के थे ऐसे भाग्य
एक वर्ष ही आयु शेष थे कर देगा फिर देहत्याग
विवाह के उपरांत रहें दोनों प्रेम में लीन
अंततः आयी घड़ी एक संगीन
यमराज स्वयं आये लेने उसके प्राण
सावित्री चल पड़ी मृत्यु मार्ग में पतिव्रत मन में ठान
पतिव्रता धर्म इतना प्रबल यमराज भी करें मान
हो कर प्रसन्न प्रभु ने भी दे दिया जीवनदान
सौभाग्य की रक्षा के लिए वट सावित्री व्रत
कथा को पद्य रूप में लिखता हूँ सब सत्य
चाहे जो स्त्री सुख सौभाय और मान
विधिवत यह पूजन करें पतिव्रत मन में ठान
श्री स्कंद पुराण अंतर्गत वटसावित्री व्रत कथा पद्य रूपेण सम्पूर्णं
- पं. अमित पाठक शाकद्वीपी