एक सुन्दर सख़्श से जुड़ गए दिल के तार
तन भी सुंदर मन भी सुंदर होने लगा था प्यार
खुश थे हम भी पा कर उनको जैसे
हो ईश्वर का उपहार
सीधी सरल सहज रहती थी
न कोई साज श्रृंगार
धीरे धीरे बात बढ़ी होने लगा मिलाप
सबके मन को मोह ले उसका ऐसा था स्वाभाव
स्नेह प्रिति की डोर बंधी थी हमदोनों के बीच
दोनों मिल कर प्रेम वृक्ष को ऐसे रहें थे सींच
जाने फिर क्या हुआ अचानक सबका बदला मन
छोड़ गए मुँह मोड़ गए लौट गए अपने वतन
आज भी जब जब हो अनुभव प्रेम का
आते उसके ख़्वाब
असर कभी बेअसर न होगा
प्रभाव कहो या दबाव
- अमित पाठक 'शाकद्वीपी'
(सम्पर्क सूत्र : - 09304444946)
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