THANK YOU FOR VISITING

THANK YOU FOR VISITING

Thursday, May 19, 2022

प्रेम अनुभूति

एक सुन्दर सख़्श से जुड़ गए दिल के तार
तन भी सुंदर मन भी सुंदर होने लगा था प्यार

खुश थे हम भी पा कर उनको जैसे 
हो ईश्वर का उपहार
सीधी सरल सहज रहती थी
न कोई साज श्रृंगार

धीरे धीरे बात बढ़ी होने लगा मिलाप
सबके मन को मोह ले उसका ऐसा था स्वाभाव

स्नेह प्रिति की डोर बंधी थी हमदोनों के बीच 
दोनों मिल कर प्रेम वृक्ष को ऐसे रहें थे सींच

जाने फिर क्या हुआ अचानक सबका बदला मन
छोड़ गए मुँह मोड़ गए लौट गए अपने वतन

आज भी जब जब हो अनुभव प्रेम का
आते उसके ख़्वाब 
असर कभी बेअसर न होगा
 प्रभाव कहो या दबाव

- अमित पाठक 'शाकद्वीपी'
(सम्पर्क सूत्र : - 09304444946)

No comments:

Post a Comment

करुणामयी प्रकृति

करुणामयी प्रकृति तेरे तन को, तेरे मन को,  सिंचे देकर शक्ति, अपनी माँ से कम भी नहीं है,  करुणामयी प्रकृति। प्रातः काल ये हमें जगा...