ये जो काया है न तेरी ये उपहार उसी का है
तेरा जो भी मान है जग में दान उसी का है
बेशक हो गए हो सफल तुम जीवन में
तेरी सफलता में भी उपकार उसी का है
जिस समाज में चहकते हो फुदकते हो
ठीक से देखो ये संसार उसी का है
तेरी जीत में ही जीत है उसकी
तू जो हारा कभी जीवन में तो हार उसी का है
सोचो नहीं अवगत कराती संसार से
न पालती न पोषती अपने अनन्य प्यार से
सिंचती न तेरे जीवन को अपने रक्त स्वेद से
परीचय कहाँ से होता तेरा भेद विभेद से
रही है कष्टों में बड़े प्रेम से पाला है
भूखी रही है खुद दिया तुझे निवाला है
विपदाओं से लड़ पड़ी है तेरी सुरक्षा में
न जाने कितनी बार तेरी आपदाओं को टाला है
है तेरी पहली शिक्षिका सबकुछ तुझे सिखाया है
ईश्वर ने अपना ही प्रतिरूप " माँ " बनाया है
सोचिए विचारिये और फिर बताइए
क्या आपने भी सन्तान धर्म अच्छे से निभाया है?
हुई नहीं है देर अभी कुछ तो कर्तव्य निभालो
बैठो माँ के पैरों में अपना शीश झुकालो
बड़ा मार्मिक सा होगा शायद कह भी न पाए हम
आज ही माता के लिए कुछ करने की ठानो
– अमित पाठक शाकद्वीपी
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