मैं बात पुरानी कहती हूं,
जब से देखा उनका चहरा,
इस दिल पे उनका ही पहरा।
उनकी आँखें जैसे दर्पण,
खुद को देखूं उनमें हर क्षण,
क्या रूप संवारा ईश्वर ने,
सागर भर दी ज्यों गागर में।
पहली बार मुलाकात हुई,
तो नैना अपलक उनको तके,
मैं खुद को जैसे भूल गई,
अपने बस फिर तो वो ही लगे।
मेरे मित्र बने मुझको समझा,
तो मन ही मन ये मन हर्षा,
पाकर ऐसा सौभाग्य प्रभु,
जीवन में प्रतिपल नेह वर्षा।
फिर संग मिला तो खिल से गए,
सीता को राघव मिल से गए,
अब उनके चरणों का वंदन,
दिन रैन किया है सब अर्पण।
उनसे से जीवन में दंभ भरूं,
वो मेरे है मैं गर्व करूं,
बस खातिर उनकी जीती हूं,
उन पर व्यय सर्वस्व करूं।
उनका भी ऐसा कहना है,
उन्हें संग हमारे रहना है,
इतना भर स्नेह हो दोनों में,
सब कुछ फिर हस कर सहना है।
उनसे ही जीवन सुंदर,
सारे शौक श्रृंगार,
उन बिन जीवन फिर क्या जीवन,
सब कुछ है बेकार।
© अमित पाठक शाकद्वीपी