चाय की वो टपरी
सर्द हवा ने जब ली अपनी अगड़ाई,
सर्दी की सुबह छुट्टी के पल में हमने टोली बनाई,
निकल पड़े हम चार दोस्त सुबह सबेरे सड़कों पर,
चाय की टपरी रही केंद्र बिंदु उन दिनों हम लड़कों पर।
गर्म गर्म सी चाय की प्याली हम सबने उठा ली,
दोस्ती की मिशाल सी कुल्हड़ फिर होठों से लगा ली,
स्वाद स्वाद में जी गए लम्हें कई सुहाने,
दिन वो वाकई स्वर्णिम से थे कोई माने या न माने।
अब वो लम्हा खो गया है, छूट गई सब मस्ती,
आदतें जब से महंगी हो गई, संबंध रह गई सस्ती,
मौके पर भी मिलना मुश्किल व्यस्त हो गया जीवन,
फिर भी उन लम्हों में देखो, अटका रहता है मन।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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