उनके पलकों में क़ैद कई,
सुंदर स्वप्न सजीले,
नैनो पर काजल की बदरी भी
पल पल प्रेम उड़िले।
उनके कुंतल के जाल तले,
जब चेहरे की शोभा निखरी,
मानो उषा की किरणें
जस बादल बीच हो बिखरी।
दीप्त भाल लगी ये बिंदी भी
मन को कर दे मोहित,
होठों पे सजती लाली,
ज्यों रक्त प्रभा सी शोभित।
गालों पर फूलों की रंगत
कानों में कुंडल झलकाया,
हर क्षण जिसकी स्मृति रही
मानो देखी जस वो काया।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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