वरद हस्त सर पर रख कर, देते प्रभु आशीष,
ज्ञान दिया गीता का रण में, कि दुनिया जाए सीख,
भेद बताते सही गलत का, रखते धर्मो का मान,
अर्जुन को देते हैं दीक्षा, दे दे कर प्रमाण।
हरते मन के तिमिर यदुनंदन, बनके दिव्य दिवाकर,
वाणी जैसे बरसाते हो अमृत कहीं सुधाकर,
अर्जुन के भाल पर प्रभु जी, करते विजय का टीका,
देते दिव्य दर्शन परब्रह्म का, कण कण इनमें दिखा।
प्रभु को पाने के पथ पर साधन कर्म ही बनता,
अपने अपने प्रयत्नों में फंसी पड़ी है जनता,
गीता का वह ज्ञान सुवर्णमय, अद्भुत जिसकी महत्ता,
कर्म और धर्म नीति का मतलब, अक्षर अक्षर कहता।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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