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Monday, October 21, 2024

देख

आंख के काजल से हटकर,
कभी उसके अंदर की नमी तो देख
 न आंक चहरे की मुस्कुराहट से हाल उसका 
दिल में ख्वाहिशें बर्फ़ सी जमी तो देख।

कभी बेड़ियों में बांध कर उसे मजबूर कर दिया, 
देवी बोलकर ही नहीं मान कर भी कभी तो देख,
भले पहले न देखी हो कोई खूबियां उसकी,
देर अब भी कहां हुई है अभी तो देख।

© अमित पाठक शाकद्वीपी

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