THANK YOU FOR VISITING

THANK YOU FOR VISITING

Monday, October 28, 2024

रूप देख देख चन्द्र जल रहा अपार है।

अनूप रूप सादगी बिखेरती प्रभा तेरी, 
विनम्र भाव नेह से गेह देह की भरी,
शांत चित्त मौन भाव रूप का श्रृंगार है,
रूप देख देख चन्द्र जल रहा अपार है।

प्रदीप्त चाँदनी का यूं धरा पे ही आभास है,
है वाणी में शहद घुली अद्वितीय मिठास है,
सर्प रूपी कुंतलो का कटी तलक प्रसार है,
रूप देख देख चन्द्र जल रहा अपार है।

सौम्य सी छवि तेरी मन को वश में डालते,
रहा आकर्षण सदा फिर रहे टालते,
नयन कमल के बीच यूं सजी जो बिंदिया लिलार है।
रूप देख देख चन्द्र जल रहा अपार है।

लालिमा रक्त गाल की सेव से कहीं गहन,
कर्ण कुंडलो से निखर रही युगल श्रवण,
महावर से सजी कलाई की चूड़ियां श्रृंगार है,
रूप देख देख चन्द्र जल रहा अपार है।

© अमित पाठक शाकद्वीपी 

1 comment:

गणपति वंदना

हे सिद्धि बुद्धि सुरपति,  हे सुन्दर समुख शरीर, भजन करूं कर जोड़ मैं,  हे विकट विनायक वीर।। तन पे तेरे दिव्य पीतांबर, जय हो विनाश...