अनूप रूप सादगी बिखेरती प्रभा तेरी,
विनम्र भाव नेह से गेह देह की भरी,
शांत चित्त मौन भाव रूप का श्रृंगार है,
रूप देख देख चन्द्र जल रहा अपार है।
प्रदीप्त चाँदनी का यूं धरा पे ही आभास है,
है वाणी में शहद घुली अद्वितीय मिठास है,
सर्प रूपी कुंतलो का कटी तलक प्रसार है,
रूप देख देख चन्द्र जल रहा अपार है।
सौम्य सी छवि तेरी मन को वश में डालते,
रहा आकर्षण सदा फिर रहे टालते,
नयन कमल के बीच यूं सजी जो बिंदिया लिलार है।
रूप देख देख चन्द्र जल रहा अपार है।
लालिमा रक्त गाल की सेव से कहीं गहन,
कर्ण कुंडलो से निखर रही युगल श्रवण,
महावर से सजी कलाई की चूड़ियां श्रृंगार है,
रूप देख देख चन्द्र जल रहा अपार है।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
Beautiful creation with impactful words
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