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Tuesday, October 29, 2024

शीर्षक : अमित प्रीति तुमसे (पंच चामर छंद)

सुना रही घटा सदा, कथा वही सुधा भरे,
कहा नहीं कभी गया, भले प्रवाह थे झरे,
मुझे तुझे इसे उसे, अटूट नेह तुंग से,
उदास नैन बोलते, अनूप मेह भृंग से।

कहो कहां खता हुई, जले सदा हिया यहां,
पुनीत प्रेम की हवा, सदैव ही बहे जहां,
धरा-दिगंत,मेदिनी, प्रभात को निहारती,
करूं तभी सदा तेरी, अखंड प्रेम आरती,

© अमित पाठक शाकद्वीपी

Monday, October 28, 2024

रूप देख देख चन्द्र जल रहा अपार है।

अनूप रूप सादगी बिखेरती प्रभा तेरी, 
विनम्र भाव नेह से गेह देह की भरी,
शांत चित्त मौन भाव रूप का श्रृंगार है,
रूप देख देख चन्द्र जल रहा अपार है।

प्रदीप्त चाँदनी का यूं धरा पे ही आभास है,
है वाणी में शहद घुली अद्वितीय मिठास है,
सर्प रूपी कुंतलो का कटी तलक प्रसार है,
रूप देख देख चन्द्र जल रहा अपार है।

सौम्य सी छवि तेरी मन को वश में डालते,
रहा आकर्षण सदा फिर रहे टालते,
नयन कमल के बीच यूं सजी जो बिंदिया लिलार है।
रूप देख देख चन्द्र जल रहा अपार है।

लालिमा रक्त गाल की सेव से कहीं गहन,
कर्ण कुंडलो से निखर रही युगल श्रवण,
महावर से सजी कलाई की चूड़ियां श्रृंगार है,
रूप देख देख चन्द्र जल रहा अपार है।

© अमित पाठक शाकद्वीपी 

Monday, October 21, 2024

देख

आंख के काजल से हटकर,
कभी उसके अंदर की नमी तो देख
 न आंक चहरे की मुस्कुराहट से हाल उसका 
दिल में ख्वाहिशें बर्फ़ सी जमी तो देख।

कभी बेड़ियों में बांध कर उसे मजबूर कर दिया, 
देवी बोलकर ही नहीं मान कर भी कभी तो देख,
भले पहले न देखी हो कोई खूबियां उसकी,
देर अब भी कहां हुई है अभी तो देख।

© अमित पाठक शाकद्वीपी

Wednesday, October 2, 2024

भवमोचिनी शुभदायिनी, जगदंबिके जगतारिणी

भवमोचिनी शुभदायिनी, जगदंबिके जगतारिणीभवमोचिनी शुभदायिनी,  जगदंबिके जगतारिणी, 
हे आदि शक्ति स्वरूपिणी, हे दुष्ट दैत्य संहारिणी,
हे भगवती भयभीत हूं, भय दूर हो भयहारिणी, 
भवमोचिनी शुभदायिनी, जगदंबिके जगतारिणी।।

मस्तक पे कुमकुम रंजीते, हे देव मुनि जन वंदिते,
जय मां भवानी वरप्रदा, हे सर्व शक्ति समन्विते,
मां शारदे जगदीश्वरी कात्यायनी कमलासनी 
भवमोचिनी शुभदायिनी, जगदंबिके जगतारिणी।।

शिव की शिवा अति सुन्दरी, सौभाग्य दो परमेश्वरी,
कुछ ज्ञान तुमसे मिले मुझे, कभी भूलूं न मैं तुझे,
चरणों में खुद को सौंप कर तुझको भजूं विंध्यवासिनी,
भवमोचिनी शुभदायिनी, जगदंबिके जगतारिणी।।

– अमित पाठक शाकद्वीपी 
संपर्क सूत्र : 8935857296

श्री मदन मुरारी कृष्ण

उनके मुख की ज्योति जस ज्योति, अनुपम रूप क्या उपमा होती। उनका पानी जैसे पानी, मंद मृदुल मुस्कान सुहानी। वाणी जैसे शहद अधर पर, सुनना चाहूं ठहर...