सुना रही घटा सदा, कथा वही सुधा भरे,
कहा नहीं कभी गया, भले प्रवाह थे झरे,
मुझे तुझे इसे उसे, अटूट नेह तुंग से,
उदास नैन बोलते, अनूप मेह भृंग से।
कहो कहां खता हुई, जले सदा हिया यहां,
पुनीत प्रेम की हवा, सदैव ही बहे जहां,
धरा-दिगंत,मेदिनी, प्रभात को निहारती,
करूं तभी सदा तेरी, अखंड प्रेम आरती,
© अमित पाठक शाकद्वीपी