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Thursday, July 18, 2024
Sunday, July 14, 2024
वैवाहिक अभिषेक
गणपतिः गिरिजा वृषभध्वजः, षण्मुखो नन्दीमुख डिमडिमा। मनुज-माल-त्रिशूल-मृगत्वचः, प्रतिदिनं कुशलं वरकन्ययोः॥१॥
रविशशी-कुज इन्द्र-जगत्पतिः, भृगुज-भानुज-सिन्धुज-केतवः।
उडुगणा-तिथि-योग च राशयः, प्रतिदिनं कुशलं वरकन्ययोः॥२॥
वरुण-इन्द्र कुबेर-हुताशनाः, यम-समीरण-वारण-कंुजराः। सुरगणाः सुराश्च महीधराः, प्रतिदिनं कुशलं वरकन्ययोः॥३॥
सुरसरी-रविनन्दिनि-गोमती, सरयुतामपि सागर-घघर्रा। कनकयामयि-गण्डकि-नमर्दा, प्रतिदिनं कुशलं वरकन्ययोः॥४॥
हरिपुरी-मथुरा च त्रिवेणिका, बदरि-विष्णु-बटेश्वर-कौशला। मय-गयामपि-ददर्र-द्वारका, प्रतिदिनं कुशलं वरकन्ययोः॥५॥
भृगुमुनिश्च पुलस्ति च अंगिरा, कपिलवस्तु-अगस्त्य च नारदः। गुरूवशिष्ठ -सनातन-जैमिनी, प्रतिदिनं कुशलं वरकन्ययोः॥६॥
ऋग्वेदोऽथ यजुवेर्दः, सामवेदो ह्यथवर्णः।
रक्षन्तु चतुरो वेदा, यावच्चन्द्रदिवाकरौ॥
Thursday, July 11, 2024
सांवरे की बंसी
मुझे बना कर बंसी कान्हा,
उन अधरन पर तुम सजालो,
तन मन तुझको सौंप दिया है,
तुम चाहो तो मुझे अपनालों।
तुम बीन जीवन फीका फीका,
तुम जो दिखे फिर कोई न दिखा,
तेरे प्रेम की पाती बनकर,
मैंने जीवन जीना सीखा।
मुझ राधा को तुझको अर्पण,
किया प्रीत में सर्व समर्पण,
हम तुम दोनो रमेें रहें यूं,
छवि तेरी मेरा मन हो दर्पण।
बन कर बंसी जैसी संगी,
जैसे उमा शंकर अर्धंगी,
अपने रंग में रंग लो कान्हा,
मैं तो तेरे रंग में रंगी।
हर पल तेरे संग रहूंगी,
शब्द स्वरों में बात करूंगी,
कब तक तेरा राह निहारूं,
तुम बीन कब तक आह भरूंगी।
करते हो ये वादा तुम जो,
सब कुछ आधा आधा अब तो,
श्याम नाम की शोभा बढ़े जब,
नाम हमारा तेरे संग हो,
इतने में प्रभु जी मुस्काए,
लिए राधिका अंक लगाए,
झूम उठी फिर दसो दिशाएं,
धरती गगन समीर हर्षाए।
कही प्रभु ने बात ये सुन्दर,
बसे हो तुम तो उर के अंदर,
तुमसे ही है सब हमारा,
बंसी लेती नाम तुम्हारा।
क्यों मैं संग रखूं ये वेणु,
जब जब जाऊं चराने धेनु,
इस बंसी में बास तुम्हारा,
तुम हो इसकी रेणु रेणु।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
Sunday, July 7, 2024
पछतावा
शीर्षक : पछतावा
थे अरमान दिल के हम भी रेस में अव्वल रहे
मगर न जानें कब रास्ता बदल गया ।
बड़ी मुश्किल से हासिल की थी एक अच्छी सख्शियत अपनी,
उम्र के एक दौर ने वो रूतबा निगल लिया।।
ख्वाहिशें हाथ से रेत की तरह पिछली,
कुछ भी न ठहरा सारा ही निकल गया।
न तपीस है न उजाला ही है जीवन में,
मेरे हिस्से का तो मानो सूरज ही ढल गया।।
बड़े लोगो में गिनती होती है उनकी,
उनको देखकर जो खुद को देखा मेरा दिल दहल गया।
सड़क पर उनको आते देखा तो,
मैं खुद ही खुद राह बदल कर निकल गया।।
अब न आरजू है न तमन्ना है कोई,
अमित गिरते गिरते पर संभल गया।
समझो सबको सबकुछ नहीं मिलता,
मेरी किस्मत में विधि का ऐसा ही कलम चल गया।।
– अमित पाठक शाकद्वीपी
मन दर्पण
मेरे मन के दर्पण में
मैंने तेरी जो छवि बसाई,
कुछ और न देखा तब से
तुझको ही बस पाई
कदम कदम पर तुझे सहेजा,
तू ही मेरी कमाई
लम्हा लम्हा दिन रात मैं
तुझे ही खर्चती आई।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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