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Sunday, July 7, 2024

मन दर्पण

मेरे मन के दर्पण में 
मैंने तेरी जो छवि बसाई,
कुछ और न देखा तब से 
तुझको ही बस पाई 

कदम कदम पर तुझे सहेजा,
 तू ही मेरी कमाई 
लम्हा लम्हा दिन रात मैं
 तुझे ही खर्चती आई।
© अमित पाठक शाकद्वीपी 

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