उन अधरन पर तुम सजालो,
तन मन तुझको सौंप दिया है,
तुम चाहो तो मुझे अपनालों।
तुम बीन जीवन फीका फीका,
तुम जो दिखे फिर कोई न दिखा,
तेरे प्रेम की पाती बनकर,
मैंने जीवन जीना सीखा।
मुझ राधा को तुझको अर्पण,
किया प्रीत में सर्व समर्पण,
हम तुम दोनो रमेें रहें यूं,
छवि तेरी मेरा मन हो दर्पण।
बन कर बंसी जैसी संगी,
जैसे उमा शंकर अर्धंगी,
अपने रंग में रंग लो कान्हा,
मैं तो तेरे रंग में रंगी।
हर पल तेरे संग रहूंगी,
शब्द स्वरों में बात करूंगी,
कब तक तेरा राह निहारूं,
तुम बीन कब तक आह भरूंगी।
करते हो ये वादा तुम जो,
सब कुछ आधा आधा अब तो,
श्याम नाम की शोभा बढ़े जब,
नाम हमारा तेरे संग हो,
इतने में प्रभु जी मुस्काए,
लिए राधिका अंक लगाए,
झूम उठी फिर दसो दिशाएं,
धरती गगन समीर हर्षाए।
कही प्रभु ने बात ये सुन्दर,
बसे हो तुम तो उर के अंदर,
तुमसे ही है सब हमारा,
बंसी लेती नाम तुम्हारा।
क्यों मैं संग रखूं ये वेणु,
जब जब जाऊं चराने धेनु,
इस बंसी में बास तुम्हारा,
तुम हो इसकी रेणु रेणु।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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