एक राग एक द्वेष,
चीर भी अब तो एक सम,
एक ही जैसे भेष ।
लाल कहो क्या हाल है,
समझ सकूं न बात,
रंग अंग दोनो दुबरे,
कहो ऐसे क्यूं हालात।
मैया देखे बाल के,
बात बात पर बाट,
दिख जाए जब लाल उसे,
लियो करेज़ा साट।
मुख की ज्योति तब बढ़े,
जब सजन से होवे बात,
दूरी उसने एक पल
ज्यों देह पर पड़े आघात।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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