चित्र गढ़ रहें राधिका के ज्यों कान्हा सरकार,
मानो प्रभु जी बन गए आज कोउ चित्रकार।
रंग रंग से राधिका के तन पे खूब निखार,
मानो प्रेमी युगल के ने प्रेम का किया श्रृंगार।
चमचमात चंचल नयन लज्जा शोभत जात,
मनहु प्रेमवत चांदनी भी मंद मंद मुस्कात।
चित्र पट पर श्री की छवि से श्रीधर करें कमाल,
दोनो के अंग रंगे एक इव दोनों ही नवनिहाल।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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