कैलाश की होली
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शिव शंकर तेरी जटाओं में
गंगा की धार धरोहर है,
विषधर शोभित है गले तेरे ,
भाल त्रिपुंड की मोहर है।
जिस तन पर भस्म रमाते हो,
रंगधार उस तन के ऊपर है,
संग में गिरजा है निमग्न प्रभु,
होली का पर्व मनोहर हैं।
तुमने ही रंगी रंगोली है,
सबकी मीठी यूं बोली है,
दोनो में प्रेम बसा इतना,
ज्यों प्रीत की बहे सरोवर है।
है शिव के रंग रंगी गौरा,
या गौरा के रंग रंगे भोला,
कोई क्या ही करें निर्णय इसका,
है प्रीत ने प्रीत का ओढ़ा चोला।
आज चारों दिशाएं झूम उठी,
पद पंकज प्रभू के चूम उठी,
मंद मंद बहे पवन सुन्दर,
शिव गौरी रहें आलिंगन कर।
हंस हंस कर गौरा बात करें,
प्रभू जी भी प्रेम बरसात करें,
तन पर रंगो की बूंदों से,
दोनो सौंदर्य को मात करें।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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