दिन गुजर जाते हैं, रात कटता नहीं,
क्या किया, क्या मिला, क्या कहूं, क्या लिखूं,
ये विफलता का बादल, क्यों हटता नहीं।
मैंने कोशिश बहुत की हुआ कुछ नहीं,
मैं ना जानू गलत क्या, है क्या ही सही,
पर तलब थी जिसे वो मिला ना मुझे,
बट गई ख्वाहिशें, याद बटता नहीं।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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