मात्रा भार १६,१४
पदांंत: ११२२
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याद आ रही हैं वो बातें,माँ जो मुझसे कहती थी,
अपने आप ही दुविधा छिपा, माँ तो चुप सी रहती थी,
बहती थी आंखों से गंगा, तृण गया है कहती थी,
अपने लाल की रक्षा में मां, जानें कितना सहती थी।
याद आ रही हैं वो बातें,माँ जो मुझसे कहती थी,
अपने मन का किया कहां है, पुत्र के लिए सब करती थी,
गढ़ लेती बस किस्सा कोई, बच्चों को खुश रखती है।
मां तो हर पल में हमको बस, आंचल में ही रखती थी।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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