याद है वो होली मुझको
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याद है वो होली मुझको,
पहले पहल देखा था तुझको,
रंगो में तुम दमक रहे थे,
पंछी जैसे चहक रहे थे।
फटे पुराने कपड़े में मैं,
घूम रहा था घर के नीचे तेरे,
दोस्त मेरे सब सराबोर थे,
पर मेरी नजर में सपने तेरे।
पसन्द आ गईं हो मुझको,
दोस्त जान गए जब मेरे,
होली की हुडदंग भूल कर,
लगाएं तेरी गली के फेरे।
उस दिन दिनभर रूप निहारा,
रंग बिरंगी प्यारा प्यारा,
सुबह से लेकर दोपहर तक,
था अपना डेरा मुहल्ला तुम्हारा
शाम ढले तुम घर जब आई,
मम्मी से मिली सबको गुलाल लगाई,
देखा अपने घर जब तुमको,
किस्मत मेरी फिर हर्षाई।
तब से अब तक कितनी होली आई,
वैसी होली किसने पाई,
अबके फागुन गर आजाओ,
हाथों से यूं रंग लगाओ।
तेरे रंग में रंग लूं खुद को,
प्रीत रीत के वचन निभाऊं,
अब होली तब ही हो सुन्दर,
हम तुम दोनों जब साथ सफर पर।
अबकी होली आन मिलो तुम,
फागुन मिलन का प्रमाण बनो तुम,
तुम भी गर चुन लो मुझको,
सब कुछ सौंप दिया फिर तुझको।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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