ये मर्म समझ लो अगर तुम।
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अपने धर्म समझ लो अगर तुम,और कर्म समझ लो अगर तुम,
थोड़ा तो ध्यान धरो यारो
और मर्म समझ लो अगर तुम।
निज जीवन को आसान करो,
साथी संगत का मान करो,
तो लोगे सफलता का शिखर चूम,
बस ये मर्म समझ लो अगर तुम।
कब रुकना है कब झुकना है,
गिर कर फिर से बस उठना है,
नीति पथ पर चलना फिर झूम झूम।
ये मर्म समझ लो अगर तुम।
सबके हित का सम्मान रहे,
बड़े छोटे का मान रहे,
तो खिलेंगे फिर खुशियों के कुसुम
ये मर्म समझ लो अगर तुम।
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