मेरी नियति
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तकदीर का खेल जैसे खेल कोई मदारी का,
मोल भाव कुछ शेष नहीं,सब वैसा जैसे इच्छा कृष्ण मुरारी का।
वश में नहीं कुछ भी किसी के, सब हिस्से है भगवान के,
कहानी तेरी मेरी एक सी, हम दोनों है परेशान से।
कुछ तेरा कुछ मेरा अधूरा, ख़्वाब कहा कोई पूर्ण है,
व्यथा मात्र है यह जीवन, कुछ भी कहां सम्पूर्ण है।
मेरे मन का हुआ कहां कुछ सब होते होते रह गया,
सपने में जो महल गढ़े थे सहसा यूंही वह ढह गया।
जैसा प्रभु ने भाग्य दिया सबकुछ मुझको स्वीकार है,
हम तो बस प्यादे है उनके खिलाड़ी तारणहार है।
अब नियति को नियत मान कर सब कुछ तुझको है सौंप दिया,
मैंने अपने भाग्य वृक्ष को तेरी मिट्टी में रोप दिया।
फले फूले यह तरुवर मेरा बस तेरा ही सहारा है,
प्रभु जी केवल तुम ही तुम हो और कौन हमारा है।
© अमित पाठक शाकद्वीपी
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