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Monday, June 30, 2025

अमित पाठक शाकद्वीपी

हूँ कौन और किस लिए धरा पर,
उस ईश्वर ने मुझे उतारा है।
उसकी मर्जी वो ही जाने,
सब उसका ही इशारा है।।

नाम समान ही अमित अथाह मैं, 
उग्र नदी का जल प्रवाह मैं।
लहरों सी आशाएं हरपल मन रहूं समेटे,
विषधर जैसे डस लूं उनको, मुझसे गर कोई ऐंठे।।

धरती जैसी सहनशीलता, 
सूरज जैसा गुस्सा।
कभी कहीं मैं बिलकुल बुद्धू, 
अकल पड़ा ज्यों भूसा।।

रहूं अटल हिमवान सरिस, 
पर तृण पत्र सा डोलूं।
मित्रवत है नेह हमारा, 
सब से हस कर बोलूं ।।

कभी कहीं अकेले चल दूं,
फिर साथ किसी के हो लूं ।
बिना विचारे कुछ भी बक दूं,
जब जब मुख मैं खोलूं।।

लिए विजय विश्वास हृदय में,
सब से नाता जोडूं।
हर क्षण में मैं साथ निभाऊं,
हाथ कभी न छोड़ूं।।

अपने मुख से क्या ही सुनाऊं,
अपना मैं व्याख्यान।
सारी ही चीज़ों में प्रिय बस, 
अपना स्वाभिमान।।

अमित पाठक शाकद्वीपी 

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