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Sunday, October 29, 2023

प्रेम का असर

तुम जब आओगे
हम बातें हज़ार करेंगे
होठों से नही 
नैनो से यार करेंगे
बड़ा दिन हुआ 
नही देखा जी भर के तुझे 
इस बार मन भर दीदार करेंगे

ख़ुद की सीमाओं से मुक्त होकर
तुझमें समा जाऊं 
कहो आख़िर 
तेरे कितने करीब आऊं?

तुम सा ख़ूबसूरत नही देखा, 
जिसने तुम्हें नही देखा
उसने भला क्या देखा??

मैं अपनी बात रखने में हिचकिचाता नहीं हूं 
जैसा मैं हूं ही नहीं वैसा नजर आता नहीं हूं 
बनावटी असर से कोशो दूर हूं मैं 
मैं अपने दिल का तूझसे छिपाता नहीं हूं।

पूर्ण हो पुर्णिमा की चांद सी 
हो सरल भी मध्य रात सी 
सुकून जो घोल दे कानों में 
हैं खासियत तुम में ऐसे ही किसी बात सी।

किसी सुनसान सड़क पर एक बार मिलते 
बेफिक्र बेपनाह कभी तो यार मिलते 
मिलते ऐसे ही कि दिल को तलब हो 
यार ऐसे ही क्यों नहीं बार बार मिलते।
         – अमित पाठक शाकद्वीपी 

Wednesday, October 18, 2023

है क्या ये प्रेम?

एक अगाध सी नदी की 
प्रचंड धार है,
है क्या ये प्रेम?
अद्वितीय संस्कार है, 
पतझड़ में भी बहार है।

दीप्त जैसे चंद्रमा 
और चांदनी की आस है,
है क्या ये प्रेम?
अटूट ये विश्वास है, 
अंधेरे में प्रकाश है।

बूंद बूंद सार्थक, अंश अंश जागृत
पीड़ा मन के हर ले इसमें औषधि का वास है,
है क्या ये प्रेम?
है सहयोग की ये भावना,
अपनत्व का आभास है।

प्रेम के अनेकों रूप
अनेक इसके नाम हैं 
है क्या ये प्रेम?
किसी का विश्राम तो
किसी का आराम है
        – अमित पाठक शाकद्वीपी 

Tuesday, October 17, 2023

नारी जीवन

सुनो कहता है कुछ अंतर्मन,
है बड़ा कठिन सा ये जीवन,
घनघोर उदासी इस मन में,
सब त्याग चलूं किसी वन में ।

क्यों ऐसा मुझको भाग्य दिया,
कि अपनो ने ही त्याग दिया,
आता है हर पल रोना भी,
क्या पाप है नारी होना भी ?

सारा जीवन त्रुटिपूर्ण रहा,
हंस हंस सारा तंज सहा,
सारी उम्मीदें व्यर्थ रही,
हर क्षण हाजिर रहने की शर्त रही।

कभी मुझको देवी कहते हो,
कभी भक्षण करने को तकते हों,
कभी मान दिया नहीं कर्मो का,
बस ज्ञान दे रहे धर्मों का।

ग्रंथो में मैं गीता जैसी,
हल के नीचे सीता जैसी,
मैने ही सृजन किया सबकुछ,
है सहनशीलता भी अद्भुत।

न चाह रही कुछ दान करो,
बस हमारा भी सम्मान करो,
हाथों में तेरे हाथ किया,
हमनें भी तेरा साथ दिया ।

उन कर्तव्यों का ध्यान रहे,
उन कर्मो का गुणगान रहे
क्यों चाहते हो चुप सहती रहूं,
बन प्रीत नदी सी बहती रहूं।

जब विकट रूप यलगार किया,
शत्रु का जब संहार किया,
बन कर दुर्गा जब जाग गई,
सारी विपदा तब भाग गई।

अब बस इतनी सी चाहत है,
सम्मान मिले तो राहत है,
वरना सब वैसे का वैसा है,
मत पूछो जीवन कैसा है
ये नारी जीवन कैसा है।
        – अमित पाठक शाकद्वीपी 

Sunday, October 8, 2023

खयाल तेरा है

ख्याल तेरा है*
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मेरे दिल के किसी कोने में ख्याल तेरा है 
जो हाल है तेरा वही अब हाल मेरा है 
रहते हो कहां गुम ये जो सवाल मेरा है 
तेरा दिल ही तो ठिकाना है जबाव तेरा है 
मेरे दिल के किसी कोने में ख्याल तेरा है ।

न हाल जानते हो, न करते हो बातें हमसे 
कहो आख़िर कहां ध्यान तेरा है 
तेरी कही मानती हूं हर पल मैं 
कहो कथनों का कहां भला कोई मान मेरा है 
झूठ है बिलकुल कि ख्याल मेरा है।।

तेरी यादों में गुजरी राते 
सारा दिन तूझे याद किया 
अंधेरे में छवि तेरी 
तू ही मेरा सवेरा है
हमेशा मेरे दिल के किसी कोने में ख्याल तेरा है ।। 

कहती हैं कि बातों से अकसर मन जीत लेते हो 
लाखों में करोड़ो में एक यार मेरा है 
मिल जाए कोई मन का तो हो रोशनी जीवन में 
कोई अजीज खो जाएं तो उन बीन सब अंधेरा है 
सिर्फ इन दिनों दिल में तेरी यादों का बसेरा है । । 
– अमित पाठक शाकद्वीपी

मैं मौन ही अच्छा हूं

मैं मौन ही अच्छा हूं,
यहां लोग व्यर्थ बोलते हैं।
आपकी तस्वीर से लोग
यहां व्यक्तित्व तौलते हैं।

क्या है यही वो ?
समाज का हिस्सा,
जहां भेड़ चाल में
लोग मस्त दौड़ते हैं।

सिंहासन पर विराजमान
बड़े बेअदब से लोग,
गलत को सींचते है यहां
सही का वृक्ष तोड़ते हैं।

कदर न भाव की तेरी,
न शब्दों की ही जय है ,
हो सूरत गर अच्छी
सब तेरी ओर दौड़ते हैं।

किसी के ऐब को 
किसी का गुण बताते हो,
लोग ऐसे नहीं बिल्कुल
जैसे नज़र ये आते हैं।

सामने कहने की जिनमें
हिम्मत नहीं होती,
वैसे ही लोग अक्सर
पीछे कुछ बोल जाते हैं।

साहित्य यूं ही नहीं है
भाव अभिव्यक्ति,
मौन मुद्रा में भी
कलम से सब बताते हैं।

दोहरी भूमिका निभाने में
बड़े मग्न हैं जी सब,
चुगली पीठ पिछे कर
मुख पर मुस्कुराते हैं।

क्यों मर गई तेरी भावना मन की ?
क्यों आरंभ की तुने अवमानना जन की 
मिलो हमसे किसी गंगा के घाट पर
लिए हाथों में गंगाजल करु शुद्धि तेरे अवगुण की 
       – अमित पाठक शाकद्वीपी 

Wednesday, October 4, 2023

किस्सा 3

दुर्गेश जी की कहानी

उनके नैना जैसे जादू

उनके नैना जैसे जादू  ••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• उनके नैना जैसे जादू ,  सब   को मोहे जाए, झील सरिस हाय इन नैनन में...