यहां लोग व्यर्थ बोलते हैं।
आपकी तस्वीर से लोग
यहां व्यक्तित्व तौलते हैं।
क्या है यही वो ?
समाज का हिस्सा,
जहां भेड़ चाल में
लोग मस्त दौड़ते हैं।
सिंहासन पर विराजमान
बड़े बेअदब से लोग,
गलत को सींचते है यहां
सही का वृक्ष तोड़ते हैं।
कदर न भाव की तेरी,
न शब्दों की ही जय है ,
हो सूरत गर अच्छी
सब तेरी ओर दौड़ते हैं।
किसी के ऐब को
किसी का गुण बताते हो,
लोग ऐसे नहीं बिल्कुल
जैसे नज़र ये आते हैं।
सामने कहने की जिनमें
हिम्मत नहीं होती,
वैसे ही लोग अक्सर
पीछे कुछ बोल जाते हैं।
साहित्य यूं ही नहीं है
भाव अभिव्यक्ति,
मौन मुद्रा में भी
कलम से सब बताते हैं।
दोहरी भूमिका निभाने में
बड़े मग्न हैं जी सब,
चुगली पीठ पिछे कर
मुख पर मुस्कुराते हैं।
क्यों मर गई तेरी भावना मन की ?
क्यों आरंभ की तुने अवमानना जन की
मिलो हमसे किसी गंगा के घाट पर
लिए हाथों में गंगाजल करु शुद्धि तेरे अवगुण की
– अमित पाठक शाकद्वीपी
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