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Wednesday, October 18, 2023

है क्या ये प्रेम?

एक अगाध सी नदी की 
प्रचंड धार है,
है क्या ये प्रेम?
अद्वितीय संस्कार है, 
पतझड़ में भी बहार है।

दीप्त जैसे चंद्रमा 
और चांदनी की आस है,
है क्या ये प्रेम?
अटूट ये विश्वास है, 
अंधेरे में प्रकाश है।

बूंद बूंद सार्थक, अंश अंश जागृत
पीड़ा मन के हर ले इसमें औषधि का वास है,
है क्या ये प्रेम?
है सहयोग की ये भावना,
अपनत्व का आभास है।

प्रेम के अनेकों रूप
अनेक इसके नाम हैं 
है क्या ये प्रेम?
किसी का विश्राम तो
किसी का आराम है
        – अमित पाठक शाकद्वीपी 

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