हम बातें हज़ार करेंगे
होठों से नही
नैनो से यार करेंगे
बड़ा दिन हुआ
नही देखा जी भर के तुझे
इस बार मन भर दीदार करेंगे
ख़ुद की सीमाओं से मुक्त होकर
तुझमें समा जाऊं
कहो आख़िर
तेरे कितने करीब आऊं?
तुम सा ख़ूबसूरत नही देखा,
जिसने तुम्हें नही देखा
उसने भला क्या देखा??
मैं अपनी बात रखने में हिचकिचाता नहीं हूं
जैसा मैं हूं ही नहीं वैसा नजर आता नहीं हूं
बनावटी असर से कोशो दूर हूं मैं
मैं अपने दिल का तूझसे छिपाता नहीं हूं।
पूर्ण हो पुर्णिमा की चांद सी
हो सरल भी मध्य रात सी
सुकून जो घोल दे कानों में
हैं खासियत तुम में ऐसे ही किसी बात सी।
किसी सुनसान सड़क पर एक बार मिलते
बेफिक्र बेपनाह कभी तो यार मिलते
मिलते ऐसे ही कि दिल को तलब हो
यार ऐसे ही क्यों नहीं बार बार मिलते।
– अमित पाठक शाकद्वीपी
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