शीश पे जिनके गंग विराजे,
गले सर्प की माला,
तन पर भस्म रमाए रहते,
अरु बाघाम्बर छाला।।
कानों में कुण्डल छलकाते,
मस्तक पर प्रभु चन्द्र सजाते,
पिए हालाहल प्याला,
अद्भुत रूप निराला ।।
डम डम डमरू नाद पुकारे,
शिव शिव शिव शिव नाम उच्चारे,
कष्ट हरे जो सारा,
उस शंभू का ही सहारा।।
नीलकंठ श्रीकण्ठ कहाते,
पशु पक्षी को अंक लगाते,
पार्वती को प्यारा,
नमन करे जग सारा।।
विपदा दूर करो प्रभु मन की,
पीड़ा हर लो सबके तन की,
देव बड़ा ये आला,
भोले फिरत रहे मतवाला।।
– अमित पाठक शाकद्वीपी
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