पिताजी ; अब बुलाने पर भी क्यों वो पास आते नहीं?
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थाम कर अंगुलियों को चलाते थे जो,देख कर हमको हंसता मुस्कुराते थे जो।
जो सुनाते थे मुझको कहानियाँ भी नई,
अब बुलाने पर भी क्यों वो पास आते नहीं?
जिनके बिन जिंदगी जैसे बेमोल है,
मेरी बुनियाद में जो अहम रोल है।
गलतियों पे अब कुछ सुनाते नहीं,
अब बुलाने पर भी क्यों वो पास आते नहीं?
उनकी तस्वीर का तो सहारा सा है,
सर पे आशीष है, इशारा सा है।
पहले जैसे मगर क्यों भला बतियाते नहीं,
अब बुलाने पर भी क्यों वो पास आते नहीं?
चल गए छोड़ कर, नाते सब तोड़कर,
क्यों था जाना भला हमसे यूँ रूठकर।
पूछने पर भी मुझे क्यों बताते नहीं,
अब बुलाने पर भी क्यों वो पास आते नहीं?
इस धरा पे कौन त्यागी पिता सा हुआ,
बेटा आगे बढ़े देते हैं बस दुआ।
उनके कद तक कोई कद जाते नहीं
अब बुलाने पर भी क्यों वो पास आते नहीं?
– अमित पाठक शाकद्वीपी