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Thursday, June 5, 2025

करुणामयी प्रकृति

करुणामयी प्रकृति
तेरे तन को, तेरे मन को, 
सिंचे देकर शक्ति,
अपनी माँ से कम भी नहीं है, 
करुणामयी प्रकृति।

प्रातः काल ये हमें जगाएं, 
कलरव का करे इशारा,
जग के तम को हरती निशदिन, 
करती है उजियारा।

भूख मिटाती प्यास बुझाती 
पोषण करे हमारी,
मातृवत ही नेह लुटाती, 
हम सब की मैया प्यारी।

तरुवर के इन दो हाथों से 
झूला हमें झुलाती,
तुम जो हंसते हो खिल खिल कर 
मैया भी मुस्काती।

रहने को भू धरा दिया है, 
उड़ने को दिया आकाश,
जन जन को फिर प्राण देने को, 
सूरज का दिया प्रकाश।

भोर सुहानी, रुत मस्तानी 
दे दिए चांद सितारे,
रात्रि दिवस तेरी रक्षा में 
आँचल अपनी पसारे।

तन मन की हर पीड़ा हरती 
दिव्य औषधि जिसकी, 
ऋणी रहोगे आजीवन भी 
करो चाकरी इसकी।

एकसामन समझा है सबको 
भेदभाव न रखती,
सच में अद्भुत गुण की धनी है 
करुणामयी प्रकृति।।
 
– अमित पाठक शाकद्वीपी

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